गोविंदा और हलवाई के लड्डू | Hindi Kahani | Bhakti Stories | Moral Stories | Hindi Kahaniya | Kahani
गोविंदा और हलवाई के लड्डू | Hindi Kahani | Bhakti Stories | Moral Stories | Hindi Kahaniya | Kahani
आज से लगभग हजारों वर्ष पहले की बात है जब भारत में राजाओं का शासन हुआ करता था ऐसा माना जाता है कि राजस्थान के जयपुर का गोविंद देव मंदिर उसी समय का बना हुआ है गोविंद देव मंदिर में शुरू से ही पुजारी पूरे दिन भक्ति भाव से भगवान गोविंद देव जी की पूजा अर्चना किया करते फिर शाम के समय आरती करते और रात को शयन के लिए जाते समय मंदिर का पट बंद करने से पहले भगवान के पास चार लड्डू रख देते थे जय गोविंद पुजारी जी अच्छा एक बात बताइए आप गोविंद देव के सामने रात के समय रोजाना यह चार
(08:47) लड्डू रखकर ही मंदिर के पट बंद करते हैं ऐसा क्यों मतलब इसका क्या कारण है चार लड्डू रखने के पीछे का कारण यह है कि अगर रात के वक्त भगवान गोविंद जी को भूख लग जाए तो व यह चार लड्डू खाकर अपनी भूख मिटा सके मेरे मन के भाव ही कुछ ऐसे हैं कि ऐसा करने से मुझे अलग ही तृप्ति का अनुभव होता है भगवान तो भक्त के भाव को देखते हैं भक्त अपने भाव जैसे रखेगा वैसे ही प्रभु उसकी भक्ति और प्रेम रस में डूब जाते हैं ऐसा क्रम रोजाना ही चलता था रोजाना ही पुजारी जी गोविंद देव की मूर्ति के समक्ष आरती के बाद चार लड्डू रखकर मंदिर के प बंद करते थे पर एक दिन पुजारी जी ने शाम
(09:33) को भगवान गोविंद देव जी की आरती की परंतु रात में जब वो शयन करने जाने लगे तो वह लड्डू रखना भूल गए गोविंद देव लड्डू खाने स्वयं मूर्ति से प्रकट हुए आज थाली में लड्डू नहीं है मुझे तो बहुत जोरों की भूख लगी है यहां तो लड्डू है ही नहीं लगता है पुजारी जी आज लड्डू रखना भूल गए कोई बात नहीं पुजारी जी रोजाना तो रख ही देते हैं आज मैं अपना लड्डू स्वयं ही ले आता हूं इसके पश्चात प्रभु श्री कृष्ण ने उसी समय बड़ी-बड़ी आंखें और घुंघराले बाल वाले एक छोटे से बालक का रूप धारण कर लिया और मंदिर के पास स्थित हलवाई की दुकान पर पहुंच गए वहां पहुंचकर उन्होंने हलवाई से
(10:21) कहा बाबा मुझे भूख लगी है मुझे लड्डू चाहिए लल्ला पहले यह बताओ कि तुम इतनी रात को लड्डू लेने यहां कैसे आए बाबा मैं यहीं पास में ही रहता हूं भूख लगी थी इसी कारण मैं तुम्हारे पास लड्डू लेने आ गया अच्छा ठीक है लाओ पैसे दो मैं तुम्हें लड्डू दे देता हूं बाबा मेरे पास तो पैसे नहीं है मैं तुझे पैसे के बिना लड्डू कैसे दे दूं मैं ऐसे लड्डू नहीं दूंगा बालक रूपी भगवान कृष्ण कुछ पल सोचने लगे फिर अपने हाथ में पहना सोने का कड़ा उतार कर हलवाई से बोले बाबा मेरे पास यह सोने का कड़ा है क्या तुम इसके बदले में मुझे लड्डू दे सकते हो तुम यह कड़ा रख लो
(11:05) और मुझे लड्डू दे दो सोने का कड़ा देखते ही हलवाई के मन में लालच आ गया सोने का कड़ा हां हां लल्ला इसके बदले में तुम्हें मैं चार लड्डू अभी दिए देता हूं हलवाई ने झट से कड़ा अपने हाथ में लिया और भगवान रूपी बालक को चार लड्डू दे दिए उसके बाद गोविंद देव जी ने लड्डू खाए और अपने मंदिर लौटकर वापस मूर्ति में समा गए अगले दिन सुबह पुजारी जी मंदिर पहुंचे और उन्होंने मंदिर का पट खोला और फिर जब वह भगवान का श्रृंगार करने से पहले उन्हें स्नान करा रहे थे तभी उन्होंने देखा कि भगवान गोविंद देव जी के एक हाथ का सोने का कड़ा गायब था
(11:48) यह देखकर पुजारी जी डर गए हे गोविंद आपके हाथ का सोने का कड़ा कहां गया कल रात को मैंने देखा था दोनों हाथों में सोने के कड़े थे मंदिर में कौन आया जिसने सोने का कड़ा ले लिया मुझे महाराज तक यह खबर पहुंचा होगी अब तक यह बात मंदिर में सबको पता चल चुकी थी पुजारी जी ने मंदिर के सेवक के द्वारा उस राज्य के राजा तक यह खबर भिजवाई कि गोविंद देव जी के एक हाथ का कड़ा गायब हो गया है और फिर क्या था यह खबर आग की तरह पूरे राज्य में फैल गई और जब इसका पता उस हलवाई को चला तो वह डर के मारे कांपने लगा लाला दो समोसे देना भैया यह किस सोने के कड़े की बात नगर में फैल
(12:32) रही है अरे तुम्हें नहीं पता गोविंद देव जी के मंदिर से गोविंद देव जी के हाथों में जो सोने के कड़े हैं ना उसमें से एक हाथ का कड़ा गायब है भाई कहीं यह कड़ा वही तो नहीं जो कल रात वह बालक मेरे पास लेकर आया था मुझे तुरंत ही यह बात राजा को बतानी होगी नहीं तो सब मुझे ही चोर समझेंगे हलवाई तुरंत ही राजा के पास गया और भरी सभा में कड़ा देते हुए बोला महाराज जो गोविंद देव जी के मंदिर से गायब है पुजारी जी से पूछिए क्या यह वही कड़ा है जी महाराज यह गोविंद देव जी का ही कड़ा है लाला तुम्हारे पास यह कड़ा कैसे आया महाराज कल रात में जब अपनी दुकान बढ़ाकर
(13:15) घर जाने लगा तो उसी समय मेरे पास एक बालक लड्डू लेने आया था और उसी ने मुझे यह कड़ा दिया था और जिसके बदले मैंने उसे चार लड्डू भी दिए चार लड्डू हे गोविंद कल रात में आपके लिए थाली में लड्डू रखने भूल गया था पुजारी जी आप किस सोच में पड़ गए कौन था वह बालक महाराज वह बालक कोई और नहीं स्वयं गोविंद देव जी थे हे गोविंद हे कृष्ण मुरारी मुझे क्षमा कर दो मैं आपके लिए थाली में लड्डू नहीं रख पाया आपकी लीला अपरम पार है मैं आगे से ऐसी भूल कभी नहीं करूंगा पुजारी जी की बातों को सुनकर राजा और सभा में आए सब लोग हैरान हो जाते कि वह बालक कोई और नहीं बल्कि स्वयं भगवान
(14:02) गोविंद जी थे और यह बात सुनकर हलवाई भी खुद को कोसने लगा कि वह कितना अभागा है जो भगवान कृष्ण गोविंद मुरारी को नहीं पहचान पाया वह मन ही मन भगवान गोविंद देव जी से क्षमा मांगता है उस दिन के बाद से आज तक रोज रात को भगवान गोविंद देव जी को शयन कराते समय चार लड्डू उनके पास रखे जाते हैं
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