हरियाली अमावस्या व्रत कथा | Hindi kahani |dharmik katha

 हरियाली अमावस्या व्रत कथा | dl kahanikar |dharmik katha 


राधा वल्लभ श्रीव शि वंदावन श्री मनचंद पुराणिक कथा के अनुसार एक नगर में एक प्रतापी राजा रहता था उन्हें एक बेटा था जिसका विवाह हो चुका था एक दिन राजा की बहू ने चोरी से मिठाई खा ली और नाम चूहे का लगा दिया जिसकी वजह से चुआ बहुत गुस्सा हो गया और उसने मन मन ठान लिया कि वह चोर को राजा के सामने लेकर आएगा एक दिन राजा के यहां कुछ मेहमान आए हुए थे सभी मेहमान राजा के कमरे में सोए हुए थे क्योंकि चूहा को बहुत गुस्सा था इस वजह से वह रानी की साड़ी को ले जाकर उस कमरे में रख दिया जब सुबह में मेहमानों की आंखें खुली और उसने रानी का कपड़ा देखा व यह देखकर हैरान रह

(00:46) गया जब राजा को इस बात का पता चला तो उसने अपनी बहू को मल से निकाल दिया मल से निकलने के बाद रानी रोज शाम में दिया जलाती और जवार उगाने का काम करती थी वह रोज पूजा करके गुड़धानी का प्रसाद बांट देती थी एक दिन राजा उसी रास्ते से जा रहा था तो उसकी नजर उस दिए पर पड़ी जब वह राजमहल लौटा तब उसने अपने सैनिकों से जंगल में जाकर उस चमत्कारिक चीज के बारे में पता लगाने को कहा राजा की आज्ञा पाकर सैनिक जंगल की तरफ निकल पड़े जब वह उस पीपल के पेड़ के नीचे पहुंचे तो उन्होंने वहां देखा कि दिया आपस में बातें कर रही थी सभी अपनी अपनी कहानी बता रही थी तभी एक

(01:35) सान दिए से सभी ने सवाल किया कि तुम भी अपनी कहानी बताओ यह सुनकर सान दिय ने कहा कि वह रानी गदिया हैं उसने आगे बताया कि रानी की मिठाई चोरी की वजह से चुहे ने रानी की सारी मेहमानों के कमरे में रख दी और बग कसूर रानी को सजा मिल गई सैनिक ने दि कि स बातें सुन ली और यह बात राजा से जाकर बताई राजा को जब इस बात का पता चला तो उसने रानी को वापस महल में बुलवा लिया महल में वापस आने के बाद रानी खुशी-खुशी रहने लगी एक ब्राह्मण परिवार में पति पत्नी और पुत्री रहते थे पुत्री धीरे-धीरे बड़ी होने लगी उस लड़की में समय के साथ सभी गुणों का विकास हो रहा था लड़की सुंदर

(02:28) संस्कारवान एवं गुणवान भी थी लेकिन गरीब होने के कारण उसका विवाह नहीं हो पा रहा था एक दिन ब्राह्मण के घर एक साधु पधारी जो कि कन्या के सेवा भाव से काफी प्रसन्न हुए कन्या को लंबी आयु का आशीर्वाद देते हुए साधु ने कहा कि कन्या की हथेली में विवाह योगी रेखा नहीं है लड़की के माता-पिता ने साधु से उपाय पूछ कि कन्या ऐसा क्या करे कि उसके हाथ में विवाह योग्य बन जाए योग बन जाए साधु ने बताया कुछ दूरी पर एक गांव में सोना नाम की धोवी जाति की एक महिला अपने बेटे और बह के साथ रहती हैं जो कि बहुत ही आचार विचार और संस्कार संपन्न तथा पति प्राण है यदि

(03:15) यह कन्या उसकी सेवा करें और वह महिला इसकी शादी में अपने मांग का सिंदूर लगा दे उसके बाद इस कन्या का विवाह हो तो इस कन्या का वैधव्य योग मिट सकता है साधु ने यह भी बताया कि वो महिला कहीं आती जाती नहीं है यह बात सुनकर ब्राह्मणी ने अपनी बेटी से धोबिन की सेवा करने की बात कही कन्या तड़के ही उठकर सोना धोबन के घर जाकर सपाई और अन्य सारे कार्य करके अपने घर वापस आ जाती सोना दोविन अपनी बहू से पूछती कि तुम तो तड़के हुई ही उठकर सारे काम कर लेती हो और पता ही पता भी नहीं चलता बहु ने कहा कि मां जी मैंने तो सोचा कि आप ही सुबह उठकर

(04:02) सारे काम खुद ही खत्म कर लेती हैं मैं तो देर से उठती हूं इस पर दोनों सास बह निगरानी करने लगी कि कौन है जो तड़के ही घर का सारा काम करके चला जाता है कई दिनों के बाद ोभी ने देखा कि एक-एक कन्या मुंह अंधेरे घर में आती हैं और सारे काम करने के बाद चली जाती हैं जब वो जाने लगी तो सोना दबन उसके पैरों पर गिर पड़ी पूछने लगी कि आप कौन है और इस तरह छुपकर मेरे घर की चाकरी क्यों करते हैं तब कन्या ने साधु द्वारा कही गई सारी बात बताई सोना दोविन पति प्राण थी उसमें तेज था वह तैयार हो गई सोना दबी ने के पति थोड़ा अस्वस्थ थे उसमें अपनी बह से अपने लौट आने तक घर पर

(04:51) ही रहने को कहा सुना दबी ने जैसे ही अपने मां का सिंदूर कन्या की मांग में लगाया उसके पति गया उसने इस बात का पता चल गया वह घर से निराज जल ही चली थी यह सोच कर कि रास्ते में कहीं पीपल का पेड़ मिलेगा तो उसे भौरी देकर और उसकी परिक्रमा करके ही जल ग्रहण करेगी उस दिन हरयावली अमावस थी ब्राह्मण के घर मिले हुए पूए पकवान की जगह उसने ईंट के टुकड़ों से 108 बार भौरी देकर 108 बार पीपल के पेट की परिक्रमा की और उसके बाद जल ग्रहण किया ऐसा करते हुए उसके पति के मुर्दा शरीर में कंपन होने लगा इस तरह दो बिन का पति जीवित हो उठा सावण समार

(05:36) की कथा के अनुसार अमरपुर नगर में एक धनी व्यापारी रहता था दूर-दूर तक उसका व्यापार फैला हुआ था नगर में उस व्यापारी का सभी लोग मान सम्मान करते थे इतना सब कुछ होने पर भी वह व्यापारी अंतर मन से बहुत दुखी था क्योंकि उस व्यापारी का कोई पुत्र नहीं था दिन रात उसे एक ही चिंता सताती रहती थी उसकी मृत्यु के बाद उसके इतने बड़े व्यापार और धन संपत्ति को कौन संभालेगा पुत्र पाने की इच्छा से वह व्यापारी प्रति सोमवार भगवान शिव की व्रत पूजा किया करता था सयकाल को व्यापारी शिव मंदिर में जाकर भगवान शिव के सामने घी का दीपक जलाया करता

(06:21) था उस व्यापारी की भक्ति देखकर एक दिन पार्वती ने भगवान शिव से कहा हे प्राणनाथ यह व्यापारी आपका सच्चा भक्त है कितने दिनों से यह सोमवार का वर्त और पूजा नियमित कर रहा है भगवान आप इस व्यापार की मनोकामना अवश्य पूर्ण करें भगवान शिव ने मुस्कुराते हुए कहा हे पार्वती इस संसार में सबको उसके कर्म के अनुसार फल की प्राप्ति होती हैं प्राणी जैसा कर्म करते हैं उन्हें वैसा ही फल प्राप्त होता है इसके बावजूद पार्वती जी नहीं मानी उन्होंने आग्रह करते हुए कहा नहीं प्राणनाथ आपको इस व्यापार की इच्छा पूरी करनी ही पड़ेगी यह आपका अनन्य भक्त है

(07:06) प्रति सोमवार आपका विधिवत वर्त रखता है और पूजा अर्चना के बाद आपको भोग लगाकर एक समय भोजन ग्रहण करता है आपको इसे पुत्र प्राप्ति का वरदान देना ही होगा पार्वती का इतना आग्रह देखकर भगवान शिव ने कहा तुम्हारे आग्रह पर में इस व्यापारी को पुत्र प्राप्ति का वरदान देता हूं लेकिन इसका पुत्र 16 वर्ष से अधिक जीवित नहीं रहेगा उसी रात भगवान शिव ने स्वपन में उस व्यापारी को दर्शन देकर उसे पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया और उसके पुत्र के 16 वर्ष तक जीवित रहने की बात भी बताई भगवान के वरदान से व्यापारी को खुशी तो हुई लेकिन पुत्र की अल्पायु की चिंता से

(07:52) उस खुशी को नष्ट कर दिया व्यापारी पले की तरह सोमवार का विधिवत वर्त करता रहा कुछ महीने पश्चात उसके घर अति सुंदर पुत्र उत्पन्न हुआ पुत्र जन्म से व्यापारी के घर में खुशियां भर गई बहुत धूमधाम से पुत्र जन्म का समारोह मनाया गया व्यापारी को पुत्र जन्म की अधिक खुशी नहीं हुई क्योंकि उसे पुत्र की अल्पायु के रहस्य का पता था यह रहस्य घर में किसी को नहीं मालूम था विद्वान ब्राह्मणों ने उस पुत्र का नाम अमर रखा जब अमर 12 वर्ष का हुआ तो शिक्षा के उसे वाराणसी भेजने का निश्चय हुआ व्यापारी ने अमर के मामा दीपचंद को बुलाया और कहा कि अमर को शिक्षा प्राप्त करने के

(08:40) लिए वाराणसी छोड़ आओ अमर अपने मामा के साथ शिक्षा प्राप्त करने के लिए चल दिया रास्ते में जहां भी अमर और दीपचंद रात्रि विश्राम के लिए ठहरते वहीं यज्ञ करते और ब्राह्मणों को भोजन कराते थे लंबी यात्रा के बाद अमर और दीपचंद एक नगर में पहुंचे उस नगर के राजा की कन्या के विवाह की कुशी में पूरे नगर को सजाया गया था निश समय पर बारात आ गई लेकिन वर का पिता अपने बेटे के एक आंख से काने होने के कारण बहुत चिंतित था उसे इस बात का भय सता रहा था कि राजा को इस बात का पता चलने पर कहीं वह विवाह से इंकार ना कर दे इसे उसकी बदनामी होगी

(09:27) वर के पिता ने अमर को देखा तो उसके मस्तिष्क में एक विचार आया उसने सोचा क्यों ना इस लड़के को धुला बनाकर राजकुमारी से विवाह करा दूं विवाह के बाद इसको धन देकर विदा कर दूंगा और राजकुमारी को अपने नगर में ले जाऊंगा वर के पिता ने इसी संबंध में अमर और दीपचंद से बात की दीपचंद ने धन मिलने के लालच में वर के पिता की बात स्वीकार कर ली अमर को धूले के वस्त्र पना राजकुमारी चंद्रिका से विवाह करा दिया गया राजा ने बहु सा धन देकर राजकुमारी को विदा किया अमर जब लौट रहा था तो सच नहीं छुपा सका और उसने राजकुमारी को की डनी पर लिख दिया राजकुमारी चंद्रिका तुम्हारा विवाह

(10:18) तो मेरे साथ हुआ था मैं तो वाराणसी में शिक्षा प्राप्त करने जा रहा हूं अब तुम्हें जिस नव योग की पत्नी बनना पड़ेगा वह काना है जब राजकुमारी ने अपनी ओढनी पर लिखा हुआ पढ़ा तो उसने काने लड़के के साथ जाने से इंकार कर दिया राजा ने सब बातें जानकर राजकुमारी को मल में रख लिया उधर अमर अपने मामा दीपचंद के साथ वाराणसी पहुंच गया अमर ने गुरुकुल में पढ़ना शुरू कर दिया जब अमर की आयु 16 वर्ष पूरी हुई तो उसने एक यज्ञ किया यज्ञ की समाप्ति पर ब्राह्मणों को भोजन कराया और खूब अन वस्त्र दान किए रात को अमर अपने सेन कक्ष में सो गया शिव के वरदान के अनुसार सेन

(11:06) अवस्था में ही अमर के प्राण फके उड़ गए सूर्योदय पर मामा मर को मृत देखकर रोने पीटने लगा आसपास के लोग भी एकत्रित होकर दुख प्रकट करने लगे मामा के रोने विलाप करने के स्वर समीप से गुजरते हुए भगवान शिव और माता पार्वती माता पार्वती ने भी सुने पार्वती जी ने भगवान सेह कहा प्राणनाथ मुझसे इसके रोने के सवर सन नहीं हो रहे आप इस व्यक्ति के कष्ट अवश्य दूर करें भगवान शिव ने पार्वती जी के साथ अदृश्य रूप में समीप जाकर अमर को देखा तो पार्वती जी से बोले पार्वती यह तो उसी व्यापारी का पुत्र है मैंने इसे 16 वर्ष की आयु का वरदान दिया था इसकी आयु तो पूरी

(11:54) हो गई पार्वती जी ने फिर भगवान शिव से निवेदन किया हे प्राण नाथ आप इस लड़के को जीवित करें नहीं तो इसके माता-पिता पुत्र की मृत्यु के कान रो-रोकर अपने प्राणों का त्याग कर देंगे इस लड़के का पिता तो आपका परम भक्त है वर्षों से सोमवार का व्रत करते हुए आपको भोग लगा रहा है पार्वती के आग्रह करने पर भगवान शिव ने उस लड़के को जीवित होने का वरदान दिया और कुछ ही पल में वह जीवित होकर उठ बैठा शिक्षा समाप्त करके अमर मामा के साथ अपने नगर की ओर चल दिया दोनों चलते हुए उसी नगर में पहुंचे जहां अमर का विवाह हुआ था उस नगर में भी अमर ने यज्ञ का आयोजन किया समीप से गुजरते

(12:40) हुए नगर के राजा ने यज्ञ का आयोजन देखा राजा ने अमर को तुरंत पहचान लिया एग समाप्त होने पर राजा अमर और उसके मामा को महल ले गया और कुछ दिन उन्हें मल में रखकर बहुसा धन वस्त्र देकर राजकुमार के साथ विदा किया रास्ते में सुरक्षा के लिए राजा ने बहुत से सैनिको को भी साथ भेजा दीपचंद ने नगर में पहुंचते ही एक दूत को घर भेजकर अपने आगमन की सूचना भेजी अपने बेटे अमर के जीवित वापस लौटने की सूचना से व्यापारी बहुत प्रसन्न हुआ व्यापारी ने अपनी पत्नी के साथ स्वयं को एक कमरे में बंद कर रखा था भूख के पैसे रहकर व्यापारी और उसकी पत्नी बेटे की प्रतीक्षा कर रहे थे

(13:32) उन्होंने प्रतिज्ञा कर रखी थी कि यदि उन्हें अपने बेटे की मृत्यु का समाचार मिला तो दोनों अपने प्राण त्याग देंगे व्यापारी अपनी पत्नी और मित्रों के साथ नगर के द्वार पर पहुंचा अपने बेटे के विवाह का समाचार सुनकर पुत्र वधु राजकुमारी चंद्रिका को देखकर उसकी कुशी का ठिकाना ना रहा उसी रात भगवान शिव ने व्यापारी के शोपन में आकर कहा हे श्रेष्ठी मैंने तेरे सोमवार के व्रत करने और व्रत कता सुनने से प्रसन्न होकर तेरे पुत्र को लंबी आयु प्रदान की है व्यापारी बहुत प्रसन्न हुआ सोमवार का वर्त करने से व्यापारी के घर में खुशियां लौट आई

(14:16) शास्त्रों में लिखा है कि जो स्त्री पुरुष सोमवार का विधिवत व्रत करते और व्रत कथा सुनते हैं उनकी सभी इच्छाएं पूरी होती हैं कैसी लगी आज की कथा अगर अच्छी लग तो इसे अपने दोस्तों के साथ फैमिली के साथ शेयर करें कहानी अंत तक सुनने के लिए आप सभी का तह दिल से धन्यवाद


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