कौन थी भद्रा भद्रा को क्यों माना जाता है अशुभ ?kon thi bhadra?bhadra ko kyon mana jata hai ashubh?

 

कौन थी भद्रा भद्रा को क्यों माना जाता है अशुभ ?kon thi bhadra?bhadra ko kyon mana jata hai ashubh?

कौन थी भद्रा भद्रा को क्यों माना जाता है अशुभ ?

ज्योतिष शास्त्र में तिथि, वार, नक्षत्र, योग और करण के स्पष्ट मान आदि को पंचांग कहा जाता है। पंचांग में कुछ समय ऐसा भी होता है, जिसमें कोई भी मंगल कार्य करना निषिद्ध यानि वर्जित माना जाता है। काम करने पर कुछ न कुछ बुरा होने की आशंका रहती है। ऐसे निषिद्ध समय को ‘भद्रा’ कहते हैं। पुराणों के अनुसार भद्रा भगवान सूर्यदेव की पुत्री और राजा शनि की बहन है।

मेरा नाम भद्रा है 

मेरा नाम भद्रा है जो आप आजकल रक्षा बंधन को लेकर रोज अखबार और सोशल मीडिया पर पढ़ रहे होंगे।

मेरे पिता सूर्यनारायण है और मेरी मां का नाम छाया है शनि और यमराज मेरे खास सगे भाई हैं जो व्यक्ति मेरे भद्रा काल में रक्षा बंधन होलिका दहन करेगा या कोई शुभ कार्य करेगा में उसके कार्य में विघ्न बाधा डालूंगी।

 

 

भद्रा सूर्य भगवान की पुत्री हैं सूर्य भगवान की पत्नी छाया से उत्पन्न है और शनि भगवान की सगी बहन हैं भद्रा काले वर्ण, लंबे केश, बड़े दांत वाली तथा भयंकर रूप वाली कन्या है। इसका स्वभाव भी शनि की तरह ही कड़क है। जन्म लेते ही भद्रा यज्ञों में विघ्न-बाधा पहुंचाने लगी और मंगल कार्यों में उपद्रव करने लगी तथा सारे जगत को पीड़ा पहुंचाने लगी।

ऐसा कहा जाता हैं की भद्रा के जन्म लेते ही उसने यज्ञ, मंगल कार्यो , ब्राह्मणों के अनुष्ठान में बाधा पहुचाने लगी भद्रा के इस व्यवहार को देखकर भगवान सूर्य ने भद्रा का विवाह करने का विचार किया परन्तु असफल रहे

सूर्य भगवान ने विवाह मंडप बनवाया पर भद्रा ने सब नष्ट कर दिए भगवान सूर्यनारायण चिंताग्रस्त हो विचार करने लगे भद्रा का विवाह किस के साथ करू प्रजा के दुःख को देखकर ब्रह्माजी स्वयं सूर्य नारायण के पास आये और भद्रा के विषय में चिंता प्रकट की

भद्रा के दुष्ट स्वभाव को देखकर सूर्यदेव को उसके विवाह की चिंता होने लगी और वे सोचने लगे कि इस कन्या का विवाह कैसे होगा, सभी ने सूर्यदेव के विवाह प्रस्ताव को ठुकरा दिया। तब सूर्यदेव ने ब्रह्माजी से उचित परामर्श मांगा।

कौन थी भद्रा भद्रा को क्यों माना जाता है अशुभ ?kon thi bhadra?bhadra ko kyon mana jata hai ashubh?

 

ब्रह्माजी ने तब भद्रा से कहा कि भद्रे बव, बालव, कौलव आदि करणों के अंत में तुम निवास करो तथा जो व्यक्ति भद्रा के दौरान विवाह संस्कार, मुण्डन संस्कार, गृह प्रवेश, यज्ञोपवित, यात्रा, त्योहार, नया कार्य, रक्षा बंधन मांगलिक कार्य करे, तो तुम उन्हीं में विघ्न डालो। जो तुम्हारा आदर न करे, उनका कार्य तुम बिगाड़ देना।’ इस प्रकार उपदेश देकर ब्रह्माजी अपने लोक चले गए। इसलिए भद्रा काल में कोई शुभ कार्य नही करने की परंपरा चली आ रही है

इस दौरान कौन सा काम करना होता है वर्जित 

अशुभ भद्रा के दौरान विवाह संस्कार, मुण्डन संस्कार, गृह प्रवेश, यज्ञोपवित, शुभ कार्य के लिए यात्रा, त्योहार, नया कार्य आदि की शुरुआत नहीं करनी चाहिए। लेकिन किसी पर मुकदमा, शत्रु पक्ष से मुकाबला, राजनीतिक कार्य, सीमा पर युद्ध, ऑप्रेशन के लिए, वाहन खरीदने आदि कार्यों के लिए भद्रा शुभ होती है। अदालती कार्य, शत्रु पक्ष से मुकाबला, राजनीतिक कार्य, चिकित्सा ऑपरेशन आदि कार्यों के लिए, भद्रा शुभ होती है।

भद्रा के अशुभ प्रभावों से ऐसे पा सकते हैं छुटकारा 

भद्रा के अशुभ प्रभावों से बचने के लिए व्यक्ति को भद्रा के दिन सुबह उठकर भद्रा के बारह नामों का स्मरण करना चाहिए। भद्रा के बारह नाम इस प्रकार हैं- धन्या, दधिमुखी, भद्रा, महामारी, खरानना, कालरात्रि, महारुद्रा, विष्टि, कुलपुत्रिका, भैरवी, महाकाली, और असुरक्षयकारी भद्रा।

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