कुलक्ष्मी और लक्ष्मी की कहानी | KuLakshmi Aur Lakshmi | Hindi Kahani | Bhakti Kahani | Hindi Story

 कुलक्ष्मी और लक्ष्मी की कहानी | KuLakshmi Aur Lakshmi | Hindi Kahani | Bhakti Kahani | Hindi Story 



बहुत समय पहले की बात है एक नगर में एक राजा रहा करता था राजा अपनी रानी से बहुत ही प्रेम करता था इतना अधिक प्रेम की एक पल के लिए अगर रानी ना दिखे तो राजा बेचैन हो जाता था कुछ समय पश्चात रानी गर्भवती हुई और न महीने बाद एक पुत्री को जन्म देते ही वह भगवान को प्यारी हो गई दाई से खबर सुनकर राजा दुख में विलाप करने लगा और उसने सारा दोष अपनी पुत्री पर डाल दिया आज इसी पुत्री के कारण मेरी रानी मुझसे दूर हो गई वह इस दुनिया को छोड़कर चली गई मुझे इस पुत्री से नफरत हो गई है तुम तुम इस बेटी को जहर देकर मार दो मैं इसका मुख तक

(00:59) नहीं देखना चाहता मेरी प्राणों से प्रिय रानी इसी के कारण मर गई यह तो कु लक्ष्मी है हां यह कु लक्ष्मी है इसे मेरी नजरों के सामने से ले जाओ दाई को उस बच्ची पर तरस आ गया वह राजा से बोली महाराज आप कुछ मत करिए इस पुत्री को मैं पालूंगी इसी महल में अपनी बेटी की तरह महाराज मेरी खुद की कोई संतान नहीं इसे मुझे दे दीजिए पर इस मासूम को मारने का हुकुम मत दीजिए महाराज इस मासूम को मारने का हुकुम मत दीजिए महाराज दाई की विनती करने पर राजा मान गया उसने कन्या को मारने का निश्चय छोड़ दिया दाई उस कन्या का पालन पोषण करने लगती है उसी महल में

(01:43) रहकर वह बच्ची बड़ी होने लगी वह दिन भर मजदूरों की तरह वहां काम करती लगता ही नहीं था कि वह राजा की पुत्री है लगता था किसी नौकर की बेटी है राजा उसे कभी देखना तक नहीं चाहता था हमेशा दुत काता रहता था उसे हमेशा कु लक्ष्मी कहकर बुलाता था अब तो सब उस कन्या को कु लक्ष्मी कहकर बुलाने लगे कुछ समय पश्चात राजा ने दूसरा विवाह कर लिया धीरे-धीरे वो अपनी दूसरी पत्नी में मगन हो गया कुछ समय के बाद उस रानी ने भी एक पुत्री को जन्म दिया और राजा ने बड़े ही प्रेम से अपनी छोटी पुत्री का नाम धनवर्षा रखा दोनों बच्चियां उस महल में ही पलने बढ़ने लगी एक राजकुमारी की तरह रहती

(02:24) तो एक नौकरानी की तरह वक्त के साथ-साथ दोनों ही बड़ी हो जाती हैं महाराज भले ही कु लक्ष्मी को दाई ने पाला है पर सबकी नजरों में वह आपकी पुत्री है आप एक काम क्यों नहीं करते यदि आप कु लक्ष्मी के लिए वर ढूंढो तो ऐसा ढूंढना जो अंधा हो क्योंकि यह तो कु लक्ष्मी है यह जहां भी जाएगी उसको बर्बाद करके रख देगी तो क्यों ना हम पहले से किसी अंधे लूले लंगड़े भिखारी गरीब से इसका विवाह कर दे हां तुम ठीक कह रही हो रानी मैं आज ही कु लक्ष्मी के लिए ऐसे वर की तलाश करता हूं रानी के कहने पर राजा ने अपनी बड़ी बेटी का विवाह एक अंधे भिखारी से कर दिया और दहेज में

(03:04) कुछ नहीं दिया जबकि छोटी बेटी का विवाह एक बड़े राज घराने में कर दिया और उसे खूब धन दौलत के साथ विदा किया अब दोनों बेटियों का विवाह हो चुका था दोनों अपने ससुराल चली गई जब कु लक्ष्मी अपने ससुराल पहुंची तो उसने देखा कि वहां तो खाने को कुछ भी नहीं है पर वह उसमें भी संतोष कर लेती है अगले दिन उसकी सास और पति भीख मांगने चले जाते हैं कु लक्ष्मी को उनका भीख मांगना अच्छा नहीं लगता था एक दिन वह अपनी सास से बोली मां आप लोग भीख मांगते हैं यह सब देखकर मुझे अच्छा नहीं लगता और इतने में हम लोग का गुजारा नहीं हो पाता ठीक से पेट

(03:41) नहीं भर पाता आप मुझे आज्ञा दें तो मैं भी कुछ काम करूं बेटी तुम तो एक राजकुमारी हो महल में रही हो तुम यह सब कैसे करोगी मां जी मुझे तो बचपन से ही यह सारे काम करने की आदत है मैं सब संभाल लूंगी मुझे समझ में नहीं आ रहा कि इस बेचारी के पिता ने हम जैसे गरीबों के घर इसका विवाह क्यों कर दिया मां यही तो चिंता मुझे रहती है मैं अंधा हूं मैं देख नहीं सकता मैं भीख मांग कर गुजारा करता हूं और वह महलों की राजकुमारी मुझे सच मुछ कु लक्ष्मी पर बहुत दया आती है मां कु लक्ष्मी अपनी सास से आज्ञा लेकर अपनी चांदी की अंगूठी बेच देती है उससे जो पैसे मिलते हैं उनसे वो मंडी

(04:25) से ककड़ी खरीदती है और एक टोकरी में ककड़ी लेकर बेचने चली जाती है वो ककड़ी लेकर शिव मंदिर के पास बैठ जाती है और सबको ककड़ी बेचने लगती है धीरे-धीरे करके उसकी सारी ककड़ी बिक जाती है सिर्फ दो ककड़ी बच गई थी अभी वह उसे भी बेचना चाहती थी तो माता पार्वती को उसकी परीक्षा लेने की इच्छा हुई माता पार्वती ब्राह्मणी का वेश बनाकर कु लक्ष्मी के पास पहुंच जाती हैं हे पुत्री मुझे बहुत भूख लगी है क्या तुम मुझे यह ककड़ी दे सकती हो लेकिन मेरे पास पैसे नहीं है मैं तुम्हें पैसे नहीं दे सकती कोई बात नहीं मां आप प्रेम से इस ककड़ी को खाइए मुझे इसके दाम नहीं

(05:10) चाहिए मां पार्वती ने खुशी खुशी उस ककड़ी को खाया और बोली बेटी मैं बहुत दूर से आई हूं मेरा पैर दुख रहा है क्या तुम मेरे पैर को दबा दोगी हां हां मां आप यहां आराम से पेड़ की छाव में बैठ जाओ मैं आपके पैर दबा देती हूं कु लक्ष्मी ब्राह्मणी रूप में आई माता पार्वती के पैर दबाने लगती है पैर दबते हुए माता पार्वती वहीं पर सो जाती हैं अब जब लक्ष्मी देखती है कि माता पार्वती को ढेर सारा पसीना आया हुआ है वह अपने आंचल की हवा माता पार्वती को करने लगती है माता पार्वती सब देख रही थी सब समझ रही थी उन्होंने सोचा कि यह लक्ष्मी कितनी अच्छी है कितने मधुर स्वभाव की है

(05:54) दिल में कितनी दया भावना है तभी माता पार्वती उठकर खड़ी हो जाती हैं क्या हुआ मां आप उठ क्यों गई आप आराम से सो जाओ मैं आपको अपने आंचल की हवा कर रही हूं तभी माता पार्वती अपने रूप में आ जाती हैं उन्हें अपने सामने देखकर कु लक्ष्मी हाथ जोड़कर खड़ी हो जाती है उसकी आंखों में खुशी के आंसू थे हे माता पार्वती आपने मुझ अभागिन को दर्शन दिए आपकी जय हो मैया आपकी जय हो हां बेटी मैं तुम्हारी पूजा और सेवा से प्रसन्न हूं मांगो तुम्हें क्या दान चाहिए मां मुझे कुछ नहीं चाहिए बस आपके दर्शन हो गए मेरा जीवन सफल हो गया बेटी तुम बहुत अच्छी हो जो निस्वार्थ भावना से

(06:41) दूसरों की मदद करता है भगवान उसकी मदद अवश्य करते हैं बेटी या भभूत लो इसे अपने घर में ले जाकर सभी बर्तनों में और घर के हर हिस्से में छिड़क देना इसमें से कुछ भभूत अपने पति को पानी में मिलाकर पीने को देना उसकी आंखों की रोशनी लौट आएगी और तुम्हारे जीवन के सारे दुख दूर हो जाएंगे इसके बाद माता पार्वती अंतर्ध्यान हो गई कु लक्ष्मी ने घर आकर अपनी सास और पति को सारी बात बताई और वैसा ही किया जैसा माता पार्वती ने कहा था जब अगली सुबह सबकी आंख खुलती है तो पूरा घर महल हो गया था महल के बाहर बाग बगीचे हो गए थे पूरा घर सोने चांदी हीरे जवाहरात से भरा हुआ था

(07:27) अचानक कु लक्ष्मी का पति खुशी से च ला पड़ता है मैं मैं देख सकता हूं मेरी आंखों की रोशनी लौट आई है मैं देख सकता हूं यह सब भगवान भोलेनाथ और माता पार्वती के आशीर्वाद का चमत्कार है मेरी बहू तो साक्षात लक्ष्मी है आज से तुम्हारा नाम कु लक्ष्मी नहीं लक्ष्मी है बहू तुम्हारे आने से हमारे घर की गरीबी दूर हो गई जीती रहो बहू जीती रहो राजा को जब यह बात पता चलती है कि उसकी पुत्री को साक्षात माता पार्वती ने दर्शन दिए और उसके जीवन में खुशहाली भर दी तो राजा को अपनी गलती पर बहुत पछतावा होता है वह अपनी पुत्री से मिलने जाता है और राज महल में आदर सहित

(08:10) अपने पुत्री और दामाद को बुलाता है पहली बार राजा ने अपनी बेटी का आदर सत्कार किया उसे सम्मान दिया और अपनी बेटी को हृदय से लगाया और लक्ष्मी नाम से पुकारा लक्ष्मी को अपने पिता का स्नेह मिल गया और उसके जीवन में भगवान शिव और माता पार्वती के आशीर्वाद से सभी प्रकार की खुशियां आ गई




 प्रेमपुर गांव बहुत ही खुशहाल गांव था अपने नाम की तरह ही इसमें रहने वाले सभी लोग एक दूसरे के साथ बहुत ही प्रेम भाव से रहते थे बारिश भी समय पर होती थी जिससे अच्छी फसल हो जाए करती थी अगर कोई रोग बीमारी आती भी तो जल्दी ही लोग उससे छुटकारा भी पा लेते थे सभी जगह खुशहाली ही

(08:57) खुशहाली थी और इस खुश ली की वजह थी प्रेमपुर गांव में बना दुर्गा मां का मंदिर उस मंदिर में दुर्गा मां की भव्य मूर्ति थी सभी गांव वासी हर रोज मंदिर जाकर उस मूर्ति की पूजा किया करते थे एक दिन गांव का मुखिया सबसे कहता है सभी गांव वाले मेरी बात ध्यान से सुनो सालों साल चली आ रही परंपरा के अनुसार इस साल भी हम सब गांव वाले माता के मंदिर में बड़े धूमधाम से भव्य जागरण करेंगे मैंने दुर्गा मां के लिए शहर से नए कपड़े भी ऑर्डर कर दिए हैं गांव महिलाओं द्वारा मां को नया लाल जोड़ा पहनाया जाएगा और उनका श्रृंगार भी किया जाएगा साथ ही उनकी पूजा के लिए हर

(09:37) घर से थोड़ा-थोड़ा दूध घी उस दिन मां को अर्पित किया जाएगा समझे अपने गांव पर दुर्गा मां की विशेष कृपा है इसीलिए सभी उस रात जागकर दुर्गा मां का जागरण करेंगे जागरण की तारीख आज से ठीक एक महीने बाद की निकली है आप चिंता मत कीजिए मुखिया जी हर साल की तरह इस साल भी हम माता का जगराता बड़े धूमधाम से करेंगे सभी गांव वासी जागरण वाले दिन का बड़ी बेसब्र से इंतजार कर रहे थे लेकिन जागरण से ठीक 20 दिन पहले की बात है आधी रात का समय था तभी गांव की रहने वाली सबसे बुजुर्ग महिला सावित्री काकी अपने हाथ से ढोल पीटती हुई और चिल्लाती हुई घर से बाहर आई गांव वालों

(10:18) जल्दी बाहर आओ बहुत बड़ा अनर्थ हो गया है अरे जल्दी बाहर आओ ढोल की आवाज सुनकर सभी लोग बाहर आए उसके बाद काकी ने जो लोगों को कहा उसे सुन सभी गांव वाले हैरान रह गए अरे यह कैसी बातें कर रही हो काकी पर यह कैसे संभव है बेटा मैंने तो जो सपने में देखा वही तुम लोगों को बताया और जब से मैंने यह सपना देखा है तब से मैं भी यही सोचकर परेशान हूं कि भला ऐसा कैसे हो सकता है कि हमारी दुर्गा मां जंगल के बीचोबीच बने उस बरगद के पेड़ के नीचे कैद हो पर हमारी मां तो काफी शक्तिशाली है चलो माना कि वह उस पेड़ के नीचे कैद है लेकिन वह तो स्वयं भी बाहर आ सकती है ना छोटे से

(11:03) बिट्टू की बात सुनकर सभी सोच में पड़ गए बेटा वही तो मैं भी कह रही हूं लेकिन मां ने कहा है कि वह सिर्फ अपने भक्तों के द्वारा ही बाहर आ सकती है सभी गांव वासी काकी की बात को सुनकर हैरान तो थे लेकिन गांव की सबसे बुजुर्ग महिला की बातों को नजरअंदाज भी तो नहीं किया जा सकता था ना इसीलिए सभी लोगों ने बिना वक्त गवाए उसी रात जंगल जाकर वह बरगद का पेड़ काट डाला और उसके नीचे खुद शुरू कर दी दो घंटे खुदाई करने के बाद जो गांव वालों ने देखा उसे देख सभी हैरान रह गए देखा मैं ना कहती थी हमारी दुर्गा मां कैद है इस पेड़ के नीचे सभी लोगों ने देखा तो उनकी आंखों के

(11:42) सामने साक्षात दुर्गा मां थी उनकी 10 भुजाएं थी उनके चेहरे पर एक तेज था और चेहरे पर मुस्कान थी गांव वालों ने उन्हें पालकी में बिठाया और जोर-जोर से माता का जयकारा लगाते हुए अपने गांव के मंदिर की ओर चल दिए जोर से बोलो जय माता दी सारे बोलो जय माता दी मिलकर बोलो जय माता दी जय माता दी जय माता दी कुछ देर बाद उन्होंने पालखी लाकर मंदिर में रख दी तभी दुर्गा मां उनसे बोली मेरे बच्चों तुम लोगों की भक्ति ही मुझे यहां खींच लाई है अब मैं तुम लोगों के बीच ही रहना चाहती हूं और अब जब मैं साक्षात तुम लोगों के सामने ही हूं तो अब मेरी इस मंदिर में रखी मूर्ति की

(12:20) कोई जरूरत नहीं है तुम इसे बहते पानी में विसर्जित कर दो और मुझे उस मूर्ति के स्थान पर विराजमान होने की जगह दो माता की आज्ञा पर लोगों ने उस सैकड़ों साल पुरानी मूर्ति का विसर्जन कर दिया और साक्षात मां को उस स्थान पर बिठाकर उनकी पूजा करने लगे जागरण से कुछ पहले घटी इस घटना ने गांव में भक्ति का एक अलग ही वातावरण लाकर रख दिया था कल तक जो मूर्ति की पूजा करते थे वह अब साक्षात मां की पूजा करते हैं लेकिन माता के स्थापित होने के दो दिन बाद ही उस गांव में तरह-तरह की घटनाएं घटने लगी लोगों के बीच प्रेम भाव खत्म होने लगा घरों में चोरियां होने लगी बुजुर्गों का

(13:00) अपमान होने लगा सुनो जी बहुत कर लिया मैंने तुम्हारे बूढ़े मां-बाप की सेवा अब बस और सेवा पानी नहीं होती मुझसे या तो तुम उन्हें कहीं छोड़ आओ नहीं तो मैं तुम्हें छोड़कर जा रही हूं अरे तू क्या मैं खुद इन बुड्ढों से परेशान हो चुका हूं अभी मैं उन्हें बाहर का रास्ता दिखाता हूं बिरजू अपने कमरे से बाहर जाता है और अपने बूढ़े मां-बाप को धक्के मारकर बाहर निकालने की कोशिश करता है हेलो निकलो अब यहां से बेटा कुछ तो हम पर रहम खा अपने बूढ़े मां-बाप को कौन इस उम्र में घर से बाहर निकालता है बेटा बाहर तो बहुत तेज बारिश हो रही है आधी रात को हम इस बारिश

(13:34) में कहां जाएंगे हमें कल सुबह तक का वक्त दे दो सुबह होते ही हम चले जाएंगे अजी यह सब तो इन बुड्ढों का बहाना है मैं कहती हूं निकालो इनको लात मार कर बाहर यह सिर्फ एक घर की कहानी नहीं थी बल्कि हर घर में यही चल रहा था भाई-भाई से लड़ रहा था और बहन बहन से औरतों के साथ जबरदस्ती की जा रही थी लोगों के खेतों में आग लगकर उनकी सारी फसल खराब हो रही थी कुएं का पानी सूख चुका था लेकिन दुर्भाग्य का सिलसिला यही नहीं थमा और लोगों की अचानक मौत तक भी होने लगी एक दिन सरिता की 5 साल की लड़की की अचानक से मौत हो गई हाय मेरी बच्ची यह क्या हो गया तुझे उठ अपनी मां से बात कर

(14:15) मेरी बच्ची लोगों को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि आखिर गांव में यह अशुभ घटनाएं हो क्यों रही हैं जबकि अब तो दुर्गा मां साक्षात उनके गांव में विराजमान है छोटे से दुर्गा भक्त बिट्टू के दिमाग में भी यह बात बार-बार आती थी लेकिन वह मां का ध्यान करता रहा लेकिन एक रोज उसके पापा का भी अचानक निधन हो जाता है पापा पापा उठो ना पापा अब मेरे साथ कौन खेलेगा उठो ना पापा लेकिन वो नहीं जानता था कि अब उसके पापा कभी नहीं उठेंगे बिट्टू और उसकी मां का रो-रो कर बुरा हाल था लेकिन गांव का कोई भी व्यक्ति उनका दुख बांटने नहीं आया बिट्टू और उसकी मां ने अकेले ही बिट्टू के

(14:53) पिता को अग्नि दी और उसका अंतिम संस्कार किया रात को बिट्टू जब घर लौटा तो उसको नींद नहीं आ रही थी और वह गुस्से में उठ खड़ा होता है और कहीं जाने लगता है तभी उसकी मां बेटा बिट्टू आधी रात को तू कहां जा रहा है मां मैं मंदिर जाकर दुर्गा मां से पूछूंगा कि उन्होंने मेरे पापा को मुझसे क्यों छीना यह कहकर बिट्टू गुस्से में चला जाता है उसकी मां भी उसके पीछे-पीछे चली जाती है वो दोनों रात को ही माता के मंदिर गए जबकि माता की आज्ञा के अनुसार कोई भी रात को मंदिर नहीं आ सकता था और जो कोई भी ऐसा करेगा उसे माता के क्रोध का शिकार होना पड़ेगा लेकिन उन

(15:28) दोनों को जैसे इस बात की परवाह थी नहीं वो दोनों जब मंदिर पहुंचे तो वहां का नजारा देखकर थरथर कांपने लगे वहां माता तो थी ही नहीं बल्कि एक भयानक राक्षसी थी उसके पांच हाथ और तीन सर थे उसका शरीर भयानक काले रंग का था और बड़े बड़े नुकीले दांत थे उनको देख राक्षसी बोली कौन हो तुम और इस वक्त यहां क्यों आए हो पहले आप बताइए आप कौन है और हमारी दुर्गा मां कहां है दुर्गा मां मैं ही हूं तुम्हारी दुर्गा मां अब करो मेरी जय जयकार वो राक्षसी ताड़का थी सभी दुर्गा मां की पूजा करते थे इस बात से व बहुत चढती थी वह चाहती थी कि दुर्गा मां की तरह

(16:13) लोग उसकी भी पूजा करें उसने तंत्र मंत्र की विद्या से कई काली शक्तियां हासिल कर रखी थी उसने अपनी शक्तियों से सावित्री काकी के शरीर में प्रवेश किया और लोगों से झूठ कहा कि माता बर्गत के पेड़ के नीचे कैद है उसने ही यह सारी माया रची थी और वही उस पेड़ के नीचे कैद थी अब मैं इस गांव की माता हूं और अब तुम सब सिर्फ मेरी ही जय जयकार करोगे यह सब मेरी ही रची हुई माया थी जिसमें तुम सब बेवकूफ फंस गए बिट्टू और उसकी मां ने जल्दी से अपनी आंखें बंद की और दुर्गा मां का ध्यान करने लगे तभी वहां जोरदार बिजली कड़की और साक्षात दुर्गा मां प्रकट हुई दुर्गा मां

(16:54) आप जय दुर्गा मां जय दुर्गा मां जय मां दुर्गा अच्छा तो तू यहां भी आ गई चल अब जैसे मैंने तेरी मूर्ति का विसर्जन किया वैसे ही अब तेरा भी खात्मा कर देती हूं यह कहकर उसने अपनी मायावी शक्ति से एक तलवार प्रकट की और दुर्गा मां की तरफ फेंक दी लेकिन दुर्गा मां ने अपने त्रिशूल से उस पर वार किया जिससे उसके शरीर के हजारों टुकड़े हो गए और उसकी मौत हो गई ए मां तुमने हमारे गांव को अपनी कृपा से क्यों वंचित कर दिया लौट आओ मां लौट आओ बेटे अब मैं फिर से यहीं रहूंगी और इस गांव को छोड़कर कहीं नहीं जाऊंगी जहां तुम जैसे भक्त हो मैं उस गांव को नहीं छोड़ सकती यह

(17:33) कहकर मां ने अपना दाहिना हाथ उठाया और उससे एक तेज उत्पन्न हुआ उस तेज से गांव फिर पहले जैसा हो गया लोग प्यार से रहने लगे कुव में पानी भर आया खेतों में फसले उगाई और यहां तक कि इन दिनों जिनकी मृत्यु हुई थी वह लोग जीवित हो उठे मां की महिमा देख सभी गांव वालों ने मां के नाम के जयकारे लगाए और बड़े धूमधाम से दुर्गा मां के लिए जागरण किया


कोई टिप्पणी नहीं

Blogger द्वारा संचालित.