नागपंचमी स्पेशल - सेठ के अत्याचारों से शेषनाग ने बचाई जान | Naagpanchmi Special |

  नागपंचमी स्पेशल - सेठ के अत्याचारों से शेषनाग ने बचाई जान | Naagpanchmi Special 



 पवित्र कहानियां अनंतम वासुकीम शेषम पद्मनाभम च कमलम शंखपाल धर्त सटम तक्ष कम कालियन नव नामानि नागा नाम च महात्मा नाम सायम काले पठ नित्यम प्रातः काले विशेषत तस्मै विषयम नास्ति सर्वत्र विजय भवे नमस्कार दोस्तों यह अलौकिक नाग मंत्र है जिसे नाग पंचमी के दिन भक्तों को अवश्य पढ़ना चाहिए हिंदू धर्म में नाग को देवता माना जाता है सावन मास के कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि को नाग पंचमी मनाई जाती है इस दिन नाग देवता की पूजा करने से भक्तों को उनकी विशेष कृपा प्राप्त होती है नाग देवता को भगवान शंकर ने अपने गले में स्थान दिया है ऐसा कहा जाता है कि नागों

(01:08) की पूजा करने से भगवान भोलेनाथ बहुत प्रसन्न होते हैं इनकी पूजा आराधना करने से ना केवल सर्प दोष से मुक्ति मिलती है बल्कि सभी मनोकामनाएं भी शीघ्र पूर्ण होती हैं नाग पंचमी का व्रत करने वाले भक्त इस कथा को जरूर पढ़े मान्यताओं के अनुसार इस कथा को पढ़ने से नाग देवता जल्द प्रसन्न हो जाते हैं प्राचीन काल में एक सेठ जी थे जिनके सात पुत्र थे सभी पुत्र विवाहित थे सबसे छोटे पुत्र की पत्नी उत्तम चरित्र की और सुशील कन्या थी परंतु उसका कोई भी भाई नहीं था एक दिन घर की बड़ी बहू ने घर लीपने के लिए पीली मिट्टी लाने के लिए सभी बहुओं को अपने साथ चलने के लिए कहा तो सभी

(02:03) बहू डलिया और खुरपी लेकर चल पड़ी सभी बहुए मिट्टी खोदने लगी तभी वहां एक सर्प निकला जिसे बड़ी बहू खुरपी से मारने लगी यह देखकर छोटी बहू ने उसे रोकते हुए कहा इसे मत मारो इसने क्या अपराध किया है जो आप मार रहे हो यह तो निरपराध है यह सुनकर बड़ी बहू ने उसे नहीं मारा तब सर्प एक ओर जाकर बैठ गया तब छोटी बहू ने उससे कहा हम लोग अभी लौट कर आते हैं आप यहां से जाना मत यह कहकर वह सबके साथ मिट्टी लेकर घर चली गई और घर जाकर सर्प से पुनः आने का जो वादा किया था उसे भूल गई दूसरे दिन अचानक जब सर्प को किए हुए वादे वाली बात याद आई तब छोटी बहू फौरन ही सबको साथ लेकर

(02:52) वहां गई सर्प उसी स्थान पर बैठा था यह देखकर छोटी बहू बोली सर भैया नमस्ते तू भैया कह चुकी है इसीलिए तुझे छोड़ देता हूं नहीं तो झूठा वादा करने के कारण तुम्हें अभी डस लेता भैया मुझसे भूल हो गई इसके लिए आपसे क्षमा मांगती हूं ठीक है आज से तुम मेरी बहन हुई और मैं तेरा भाई तुझे जो मांगना हो मांग ले कुछ दिन बाद वह सर्प मनुष्य का रूप धारण करके उसके घर आया और बोला कि मेरी बहन को भेज दो तब सबने कहा कि इसका तो कोई भाई नहीं था तो वह बोला मैं दूर के रिश्ते में इसका भाई लगता हूं मैं बचपन में ही घर से बाहर चला गया था इस तरह से विश्वास दिलाने पर घर के लोगों ने

(03:40) छोटी बहू को उसके साथ भेज दिया रास्ते में सर्प ने मार्ग में बताया मैं वही सर्प हूं इसलिए तुम डरना नहीं और जहां चलने में कठिनाई हो वहां मेरी पूछ पकड़ लेना छोटी बहू ने सर्प के कथन ही किया और इस प्रकार वह उसके घर पहुंच गई वहां के घर द्वार और धन्य ऐश्वर्य को देखकर वह चकित रह गई एक दिन सर्प की माता ने उससे कहा मैं एक काम से बाहर जा रही हूं तुम अपने भाई को ठंडा दूध पिला देना उसे इस बात का ध्यान ना रहा और गलती से उसने गर्म दूध पिला दिया जिससे सर्प का मुंह जल गया यह देखकर सर्प की माता बहुत क्रोधित हुई और दुखी हो गई परंतु सर्प के

(04:24) समझाने पर शांत हो गई कुछ दिन बाद सर्प ने कहा कि बहन को अब उसके घर भेज देना चाहिए तब सर्प और उसके पिता ने उसे बहुत सारा सोना चांदी हीरे जवाहरात वस्त्र भूषण आदि देकर उसके घर पहुंचा दिया इतनी धन दौलत देखकर बड़ी बहू ईर्षा से जलकर बोली तुम्हारा भाई तो बड़ा धनवान है तुझे तो उससे और भी धन लाना चाहिए सर्प ने जब यह बात सुनी तो सब वस्तुएं सोने की लाकर दे दी यह देखकर बड़ी बहू ने कहा इन्हें झाड़ू भी सोने की होनी चाहिए तब सर्प ने झाड़ू सोने की लाकर रख दी सर्प ने छोटी बहू को हीरे मणियों से जड़ित एक अद्भुत हार भी दिया था जिसकी प्रशंसा उस देश की रानी ने

(05:09) भी सुनी वह राजा से बोली कि सेठ की छोटी बहू का हार मुझे लाकर दे दो राजा ने मंत्री को आदेश दिया कि शीघ्र ही वह हार मेरे पास पेश किया जाए मंत्री ने सेठ जी से जाकर कहा कि महारानी जी छोटी बहू का हार पहनेंगी वो उससे लेकर मुझे दे दो सेठ जी राजा के आदेश को टाल नहीं सके और तुरंत भय वश छोटी बहू से हार मंगाकर मंत्री को दे दिया छोटी बहू को जब इस बात का पता चला कि मेरा हार रानी के पास चला गया तो बहुत दुखी हुई उसने तुरंत ही अपने सर्प भाई को याद किया और सर्प भाई के आने पर निवेदन किया कि भैया रानी ने मेरा हार छीन लिया है तुम कुछ ऐसा करो कि जब वह हार उसके गले

(05:53) में रहे तब तक के लिए सर्प बन जाए और जब वह मुझे लौटा दे तब हीरो और मणियों का हो जाए सर्प ने ने ठीक वैसा ही किया जैसे ही रानी ने हार पहना वैसे ही वह सर्प बन गया यह देखकर रानी चीक पड़ी और रोने लगी यह देखकर राजा ने सेठ के पास खबर भेजी कि छोटी बहू को तुरंत भेजो सेठ जी डर गए कि राजा ना जाने क्या करेगा वे स्वयं छोटी बहू को साथ लेकर राजा के दरबार में पहुंचे राजा ने छोटी बहू से पूछा तूने क्या जादू किया है मैं तुझे दंड दूंगा राजन मेरी गलती के लिए क्षमा करें यह हार ही ऐसा है कि मेरे गले में हीरों और मणियों का रहता है और दूसरे के गले में

(06:36) सर्प बन जाता है राजा ने जब यह सुना तब वह सर्प बना हार उसे देकर कहा अभी इस हार को पहन कर दिखाओ छोटी बहू ने जैसे ही उसे पहना वैसे ही वह हार हीरे मणियों का हो गया यह देखकर राजा को उसकी बात का विश्वास हो गया राजा ने प्रसन्न होकर उसे बहुत सी मुद्राएं और पुरस्कार देकर सम्मानित किया छोटी बहू अपने हार सहित घर लौट आई छोटी बहू के धन को देखकर बड़ी बहू ने ईर्ष्या के कारण उसके पति को सिखाया कि छोटी बहू के पास कहीं से धन आया है यह सुनकर उसके पति ने अपनी पत्नी को बुलाकर कहा ठीक ठीक बताओ कि यह धन तुझे कौन देता है तब वह सर्प को याद करने लगी उसी समय सर्प प्रकट

(07:21) होकर बोला यह मेरी यह मेरी धर्म बहन है और आप यदि मेरी धर्म बहन के आचरण पर संदेह प्रकट करोगे तो मैं तुम्हें डस लूंगा यह सुनकर छोटी बहू का पति बहुत प्रसन्न हुआ और उसने सर्प देवता का बड़ा आदर सत्कार के साथ पूजन अर्चन किया क्योंकि उस दिन पंचमी तिथि थी इसीलिए उसी दिन से नाग पंचमी का त्यौहार मनाया जाने लगा स्त्रियां सर्प को भाई मानकर उसकी पूजा आज भी करती हैं अनंतम वासुकीम शेषम पद्मनाभम चकम बलम शंखपाल धर्त सटम तक्ष कम कालियन तानी नव नामानि नागा नाम च महात्मा नाम सायम काले पठ नित्यम प्रातः काले विशेषत तस्मै विषयम नास्ति सर्वत्र विजयी

(08:17) भवे नमस्कार दोस्तों यह अलौकिक नाग मंत्र है जिसे नाग पंचमी के दिन भक्तों को अवश्य पढ़ना चाहिए हिंदू धर्म में नाग को देवता माना जाता है सावन मास के कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि को नाग पंचमी मनाई जाती है इस दिन नाग देवता की पूजा करने से भक्तों को उनकी विशेष कृपा प्राप्त होती है नाग देवता को भगवान शंकर ने अपने गले में स्थान दिया है ऐसा कहा जाता है कि नागों की पूजा करने से भगवान भोलेनाथ बहुत प्रसन्न होते हैं इनकी पूजा आराधना करने से ना केवल सर्प दोष से मुक्ति मिलती है बल्कि सभी मनोकामनाएं भी शीघ्र पूर्ण होती हैं नाग पंचमी का व्रत करने वाले भक्त इस

(09:15) कथा को जरूर पढ़ें मान्यताओं के अनुसार इस कथा को पढ़ने से नाग देवता जल्द प्रसन्न हो जाते हैं प्राचीन काल में एक सेठ जी थे जिनके सात पुत्र थे सभी पुत्र विवाहित थे सबसे छोटे पुत्र की पत्नी उत्तम चरित्र की और सुशील कन्या थी परंतु उसका कोई भी भाई नहीं था एक दिन घर की बड़ी बहू ने घर लीपने के लिए पीली मिट्टी लाने के लिए सभी बहुओं को अपने साथ चलने के लिए कहा तो सभी बहू डलिया और खुरपी लेकर चल पड़ी सभी बहुएं मिट्टी खोदने लगी तभी वहां एक सर्प निकला जिसे बड़ी बहू खुरपी से मारने लगी यह देखकर छोटी बहू ने उसे रोकते हुए कहा इसे मत मारो इसने क्या अपराध किया है

(10:06) जो आप मार रहे हो यह तो निरपराध है यह सुनकर बड़ी बहू ने उसे नहीं मारा तब सर्प एक ओर जाकर बैठ गया तब छोटी बहू ने उससे कहा हम लोग अभी लौट कर आते हैं आप यहां से जाना मत यह कहकर वह सबके साथ मिट्टी लेकर घर चली गई और घर जाकर सर्प से पुन आने का जो वादा किया था उसे भ गई दूसरे दिन अचानक जब सर्प को किए हुए वादे वाली बात याद आई तब छोटी बहू फौरन ही सबको साथ लेकर वहां गई सर्प उसी स्थान पर बैठा था यह देखकर छोटी बहू बोली सर्प भैया नमस्ते तू भैया कह चुकी है इसीलिए तुझे छोड़ देता हूं नहीं तो झूठा वादा करने के कारण तुम्हें अभी डस लेता भैया मुझसे भूल

(10:55) हो गई इसके लिए आपसे क्षमा मांगती हूं ठीक है आज से तुम मेरी बहन हुई और मैं तेरा भाई तुझे जो मांगना हो मांग ले कुछ दिन बाद वह सर्प मनुष्य का रूप धारण करके उसके घर आया और बोला कि मेरी बहन को भेज दो तब सबने कहा कि इसका तो कोई भाई नहीं था तो वह बोला मैं दूर के रिश्ते में इसका भाई लगता हूं मैं बचपन में ही घर से बाहर चला गया था इस तरह से विश्वास दिलाने पर घर के लोगों ने छोटी बहू को उसके साथ भेज दिया रा में सर्प ने मार्ग में बताया मैं वही सर्प हूं इसलिए तुम डरना नहीं और जहां चलने में कठिनाई हो वहां मेरी पूछ पकड़ लेना छोटी बहू ने सर्प के कथन सार ही किया

(11:42) और इस प्रकार वह उसके घर पहुंच गई वहां के घर द्वार और धन्य ऐश्वर्य को देखकर वह चकित रह गई एक दिन सर्प की माता ने उससे कहा मैं एक काम से बाहर जा रही हूं तुम अपने भाई को ठंडा दूध पिला देना उसे इस बात का ध्यान ना रहा और गलती से उसने गर्म दूध पिला दिया जिससे सर्प का मुंह जल गया यह देखकर सर्प की माता बहुत क्रोधित हुई और दुखी हो गई परंतु सर्प के समझाने पर शांत हो गई कुछ दिन बाद सर्प ने कहा कि बहन को अब उसके घर भेज देना चाहिए तब सर्प और उसके पिता ने उसे बहुत सारा सोना चांदी हीरे जवाहरात वस्त्र भूषण आदि देकर उसके घर पहुंचा दिया इतनी धन दौलत देखकर बड़ी

(12:27) बहू ईर्ष्या से जलकर बोली तुम्हारा भाई तो बड़ा धनवान है तुझे तो उससे और भी धन लाना चाहिए सर्प ने जब यह बात सुनी तो सब वस्तुएं सोने की लाकर दे द यह देखकर बड़ी बहू ने कहा इन्हें झाड़ू भी सोने की होनी चाहिए तब सर्प ने झाड़ू भी सोने की लाकर रख दी सर्प ने छोटी बहू को हीरे मणियों से जड़ित एक अद्भुत हार भी दिया था जिसकी प्रशंसा उस देश की रानी ने भी सुनी वह राजा से बोली कि सेठ की छोटी बहू का हार मुझे लाकर दे दो राजा ने मंत्री को आदेश दिया कि शीघ्र ही वह हार मेरे पास पेश किया जाए मंत्री ने सेठ जी से जाकर कहा कि महारानी जी छोटी बहू का

(13:09) हार पहनेंगी वह उससे लेकर मुझे दे दो सेठ जी राजा के आदेश को टाल नहीं सके और तुरंत भय वश छोटी बहू से हार मंगाकर मंत्री को दे दिया छोटी बहू को जब इस बात का पता चला कि मेरा हार रानी के पास चला गया तो बहुत दुखी हुई उसने तुरंत ही अपने सर्प भाई को याद किया और सर्प भाई के आने पर निवेदन किया कि भैया रानी ने मेरा हार छीन लिया है तुम कुछ ऐसा करो कि जब वह हार उसके गले में रहे तब तक के लिए सर्प बन जाए और जब वह मुझे लौटा दे तब हीरो और मणियों का हो जाए सर्प ने ठीक वैसा ही किया जैसे ही रानी ने हार पहना वैसे ही वह सर्प बन गया

(13:51) यह देखकर रानी चीक पड़ी और रोने लगी यह देखकर राजा ने सेठ के पास खबर भेजी कि छोटी बहू को तुरंत भेजो सेठ जी डर गए कि राजा ना जाने क्या करेगा वे स्वयं छोटी बहू को साथ लेकर राजा के दरबार में पहुंचे राजा ने छोटी बहू से पूछा तूने क्या जादू किया है मैं तुझे दंड दूंगा राजन मेरी गलती के लिए क्षमा करें यह हार ही ऐसा है कि मेरे गले में हीरों और मणियों का रहता है और दूसरे के गले में सर्प बन जाता है राजा ने जब यह सुना तब वह सर्प बना हार उसे देकर कहा अभी इस को पहन कर दिखाओ छोटी बहू ने जैसे ही उसे पहना वैसे ही वह हार हीरे मणियों का हो गया यह

(14:37) देखकर राजा को उसकी बात का विश्वास हो गया राजा ने प्रसन्न होकर उसे बहुत सी मुद्राएं और पुरस्कार देकर सम्मानित किया छोटी बहू अपने हार सहित घर लौट आई छोटी बहू के धन को देखकर बड़ी बहू ने ईर्ष्या के कारण उसके पति को सिखाया कि छोटी बहू के पास कहीं से धन आया है यह सुनकर उसके पति ने अपनी पत्नी को बुला आ कर कहा ठीक ठीक बताओ कि यह धन तुझे कौन देता है तब वह सर्प को याद करने लगी उसी समय सर्प प्रकट होकर बोला यह मेरी यह मेरी धर्म बहन है और आप यदि मेरी धर्म बहन के आचरण पर संदेह प्रकट करोगे तो मैं तुम्हें डस लूंगा यह सुनकर छोटी बहू का पति बहुत प्रसन्न हुआ

(15:20) और उसने सर्प देवता का बड़ा आदर सत्कार के साथ पूजन अर्चन किया क्योंकि उस दिन पंचमी तिथि थी इसीलिए उसी दिन से नाग पंचमी का त्यौहार मनाया जाने लगा स्त्रियां सर्प को भाई मानकर उसकी पूजा आज भी करती हैं रिया भक्ति पवित्र कहानियां


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