शिव जी और माँ पार्वती की लड़ाई | Shiv Parvati | Bhakti Kahani | Hindi Kahani | Moral Stories |

  शिव जी और माँ पार्वती की लड़ाई | Shiv Parvati | Bhakti Kahani | Hindi Kahani | Moral Stories | 




एक दिन महादेव देवी पार्वती से बोले कि आज उन्होंने एक नए खेल का निर्माण किया है उनके अनुरोध पर माता पार्वती उनके साथ चौसर खेलने के लिए तैयार हो गई क्योंकि चौसर का निर्माण महादेव ने किया था इसलिए वे उस खेल में जीते ही जा रहे थे अंत में माता पार्वती भगवान शिव से बोली स्वामी इस खेल का निर्माण आपने किया है अतः आप इस खेल को जीते जा रहे हैं परंतु खेल के कुछ नियम भी होते हैं आप खेल के नियम बनाइए उसी के पश्चात देखना मैं आपको एक भी बाजी जीतने का मौका नहीं दूंगी ठीक है पार्वती अब हम इस खेल के नियम बनाएंगे मैं तुम्हें

(00:50) इस खेल के कुछ नियम बताता हूं एक-एक करके सब कुछ दाव पर लगेगा और जो हारेगा उसे अपनी सभी वस्तुएं हार होंगी देखते हैं आज की बाजी कौन जीतता है महादेव ने चौसर के नियम बनाए और एक बार फिर चौसर का खेल शुरू हो गया इस बार माता पार्वती बार-बार जीतने लगी और थोड़े ही समय में भगवान शिव अपना सब कुछ हार गए देखा स्वामी मैंने आपको हरा ही दिया हां पार्वती अब तो मैं सब कुछ हार चुका हूं इसलिए कैलाश पर्वत पर मेरे रहने का अब कोई मतलब नहीं अब मैं कैलाश भी हार चुका हूं इसलिए अब खेल के नियम के अनुसार मैं यहां से जा रहा हूं स्वामी यह तो एक

(01:36) खेल था आप इसे इतनी गहराई से क्यों ले रहे हैं ऐसे आप मुझे छोड़कर थोड़ी चले जाएंगे पार्वती तुमने ही तो मुझे खेल के नियम बनाने के लिए कहा था और नियम के अनुसार हारने वाले को अपना सब कुछ त्याग कर जाना होता है इसलिए अब मैं यहां से जा रहा हूं स्वामी सुनिए तो स्वामी भगवान शिव ने माता पार्वती की बात को नहीं सुना वे उनसे रूठने का नाटक करके गंगा नदी के तट पर चले गए थोड़ी देर बाद जब भगवान कार्तिकेय कैलाश लौटे तो उन्होंने भगवान शिव के बारे में पूछा तो उन्हें सारी बात पता चली तो वे भगवान शिव के पास चले गए अब तो महादेव भी जा चुके थे और कार्तिकेय भी इसलिए माता

(02:22) पार्वती और चिंतित हो गई गणेश जी से अपनी माता की चिंता देखी नहीं गई वे भगवान शिव को ढूंढने निकल पड़े भगवान शिव उन्हे हरिद्वार में कार्तिकेय जी के साथ भ्रमण करते हुए मिले विष्णु जी भी उनके साथ थे पिता श्री माता श्री आपके बिना बहुत दुखी हैं वे आपको बहुत याद कर रही हैं उन्होंने मुझे आपको अपने साथ लेकर चलने के लिए आग्रह किया है कृपा करके मेरे साथ चलिए पुत्र तुम्हारी माता मेरे साथ एक बार फिर चौसर का खेल खेले तो मैं तुम्हारे साथ चल सकता हूं यही नियम है मैंने अपना सर्वस्व खेल में हारा है उसे उ से वापस लाने के लिए फिर से एक बार खेल तो खेलना ही होगा

(03:04) ना पुत्र ठीक है पिताश्री मैं आपका यह संदेश माता श्री से कह देता हूं माता पार्वती जी ने महादेव के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया चूंकि अब शंकर जी अपना सब कुछ हार चुके थे ऐसे में माता पार्वती ने उनसे पूछा कि अब उनके पास खेल में हारने के लिए क्या है इस पर नारद जी ने अपनी वीणा शिव जी को सौंप दी इस खेल में भगवान विष्णु ने भोले शंकर की इच्छा से पास का रूप धारण कर लिया था पर यह बात माता पार्वती को पता नहीं थी अब खेल में भोलेनाथ हर बार जीतने लगे गणपति जी महादेव और विष्णु जी की चाल समझ गए उन्होंने सारा वृतांत मां को बताया तो वह भयंकर क्रोधित

(03:44) हो उठी माता श्री आपके साथ छल हुआ है विष्णु जी पासे के रूप में है इसलिए पिताश्री खेल की हर बासी जीत रहे हैं पिताश्री जैसे जैसे चाहते हैं विष्णु जी वैसे-वैसे चाल चल रहे हैं क्या इतना बड़ा छल स्वामी आप जानते हैं खेल में छल करना कितना बड़ा पाप है क्या आपको यह शोभा देता है तभी विष्णु जी अपने रूप में वापस आ जाते हैं क्षमा करना देवी पार्वती मुझे लगता है हमसे अवश्य ही भूल हुई है देवी पार्वती मेरी इस गलती से तुम्हें ठेस पहुंची है उसके लिए मैं भी तुमसे क्षमा मांगता हूं मैं तो बस हंसी ठिठोली कर रहा था पर बात इतनी बढ़ जाएगी यह आभास नहीं था

(04:29) विष्णु जी और देवर्षी नारद तो केवल मेरे कहे अनुसार ही कार्य कर रहे थे इसमें इनकी कोई गलती नहीं है नहीं नहीं आपको यूं क्षमा मांगने की कोई आवश्यकता नहीं शायद मैंने भी खेल खेल में नियम कुछ ज्यादा ही शक्ति से ले लिए महादेव आपको भी तो इस वजह से बहुत परेशानी हुई मैं भी आपसे क्षमा मांगती हूं स्वामी मेरी वजह से आप भी तो बहुत परेशान हुए और फिर इस तरह से माता पार्वती और भगवान शिव के बीच फिर से सुला हो गई में पति पत्नी का रिश्ता ऐसा ही है कभी-कभी खट्टा मीठा मनमुटाव उनके प्रेम से परिपूर्ण रिश्ते में और भी मजबूती लाता [संगीत]

(05:13) है 




भगवान शिव को यह बात पता नहीं थी कि उनका एक पुत्र है जिसका निर्माण माता पार्वती ने किया है भगवान शिव माता पार्वती से मिलने आने वाले होते हैं यह खबर सुनकर माता पार्वती स्नान करने चली जाती है लेकिन उस समय कोई उपस्थित ना होने के कारण वह गणेश को बाहर पहरेदारी के लिए खड़ा करके जाती हैं कि कोई अन्य अंदर प्रवेश ना कर सके इसके पश्चात भगवान शिव वहां पहुंचते हैं और अपनी गुफा में जाने का प्रयास करते हैं गणेश जो द्वार पर पहरेदारी कर रहे होते हैं वह शिवजी को अंदर जाने से रोकते हैं शिवजी को आश्चर्य होता है कि यह बालक कौन है जो उन्ह उनके

(05:53) ही निवास स्थान पर जाने से रोक रहा है कौन हो तुम धूर्त बालक जो इस तरह से बात कर रहे हो हम स्वयं ही भीत जाकर देवी पार्वती से पूछते हैं ये कौन बालक हमारे द्वार पर हमारा रास्ता रोक कर खड़ा है रुकिए आपको भीतर जाने की अनुमति नहीं है मेरी माता श्री का आदेश है कि कोई भी भीतर ना जाने पाए और जब तक वह नहीं कहती मैं किसी को भी इस महल के भीतर नहीं जाने दूंगा बालक हमें क्रोध मत दिलाओ हमारे सामने से हट जाओ वरना हमारे क्रोध को तुम नहीं जानते हो और आप मुझे नहीं जानते मेरे होते हुए इस द्वार को कोई नहीं लांग सकता तो फिर आज हमारे हाथों तेरा वध होगा ले बचा अपने आप

(06:33) को हमारे इस वार से अच्छा तो आप युद्ध करना चाहते हैं तो यह भी हो जाए इसी बात पर गणेश जी और शिवजी में युद्ध प्रारंभ हो जाता है युद्ध में भगवान शिव अपने त्रिशूल से गणेश का सिर धर से अलग कर देते हैं सभी देवता भी वहां उपस्थित होते हैं और उन्हें भी इस बात का अंदाजा नहीं होता है कि गणेश कौन है सबकी आवाजें सुनकर माता पार्वती बाहर आती है और यह देखती हैं कि उनके पुत्र का धड़ अलग और सिर अलग है माता पार्वती क्रोध से भर गई और शेर सवारी मां दुर्गा के रूप में आ गई उन्होंने अपनी सभी शक्तियों को प्रकट कर प्रलय मचाने का आदेश दिया शैलपुत्री

(07:14) ब्रह्मचारिणी कुशमांडा स्कंद माता कात्यायनी कालरात्रि महागौरी सिद्धि दात्री मेरे नौ रूप मेरी नौ शक्तियां प्रकट हो देखते ही देखते मां दुर्गा के नौ रूप नौ देवियां प्रकट हो गई मेरी शक्तियों सारे संसार में प्रलय मचा दो सबसे पहले उनका विध्वंस करो जो मेरे पुत्र को मारकर आनंद मना रहे हैं विजय उत्सव मना रहे हैं स्वजन परिजन का भेद भुलाकर जो मिले उन्हें तुरंत यमपुरी पहुंचा दो जो आज्ञा मातेश्वरी सभी देवी शक्तियां संपूर्ण कैलाश सहित पूरे ब्रह्मांड में विध्वंस करने लगी संपूर्ण ब्रह्मांड में कोलाहल मच गया सभी ऋषि गण और देवता गण माता से

(07:56) प्रार्थना करने लगे हे मातेश्वरी शांत हो जाइए नहीं तो अनर्थ हो जाएगा यह पूरी सृष्टि आपके क्रोध की ज्वाला से भस्म हो जाएगी जब तक मेरा पुत्र जीवित नहीं हो जाता तब तक चारों ओर ऐसी ही तबाही मची रहेगी अब तो भगवान भोलेनाथ ही कुछ कर सकते हैं हम सभी को उनके पास जाना चाहिए सभी देवता गण और ऋषि गण भगवान भोलेनाथ के पास जाते हैं हे महादेव मां पार्वती का क्रोध बढ़ता ही जा रहा है उनकी नौ शक्तियां पूरे ब्रह्मांड का विध्वंस कर देंगी कुछ कीजिए प्रभु उनका क्रोध शांत करने के लिए कुछ कीजिए मां पार्वती ने कहा है जब तक गणेश को पुनर्जीवन नहीं मिल जाता तब तक उनका

(08:33) क्रोध शांत नहीं होगा अगर गणेश को पुनर्जीवन नहीं मिला तो सर्वनाश हो जाएगा आप चिंता मत कीजिए मैं इस समस्या का समाधान सोच चुका हूं 

पर महादेव आप बालक गणेश को पुनर्जीवित कैसे करेंगे बालक गणेश का मस्तक तो आपके त्रिशूल के प्रहार से क्षत विक्षत हो गया है होगा अवश्य होगा हे मधुसूदन आप उत्तर दिशा की ओर जाइए और जो भी प्राणी आपको सबसे पहले दिखाई दे उसका मस्तक काट कर ले आइए भगवान श्री हरि विष्णु उत्तर दिशा की ओर प्रस्थान करते हैं उत्तर दिशा का अवलोकन करने पर भगवान श्री हरि विष्णु को सबसे पहले दिखाई देने वाला प्राणी एक हाथी था जो वास्तव में

(09:16) देवराज इंद्र का श्रापित हाथी ऐरावत था श्री हरि विष्णु मुस्कुराए और उस हाथी के समीप गए हाथी ने विष्णु जी को नमस्कार किया मानो वो खुद भी  श्राप से मुक्त होने की कामना कर रहा हो श्री हरि विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से उसका शीष काटकर उसे मुक्ति प्रदान की ऐरावत हाथी श्राप से मुक्त हो गया और अपने असली रूप में आकर स्वर्ग लौट गया भगवान विष्णु हाथी का मस्तक लेकर कैलाश लौट आए उसके पश्चात भगवान शिव गणेश के धर से हाथी का मस्तक जोड़ देते हैं भगवान गणेश जीवित हो जाते हैं और माता पार्वती का क्रोध शांत हो जाता है सभी देवी देवता भगवान

(09:58) गणेश को अपना अपना आशीर्वाद देते हैं पुत्र गणेश मैं तुम्हें वरदान देती हूं कि संसार में अब से तुम प्रथम पूजनीय कहलाओगे कोई भी मंगल कार्य शुरू करने के लिए प्रथम पूजा तुम्हारी होगी श्री गणेश के प्रथम पूजन के बिना कोई भी मंगल कार्य पूजा पाठ जप तप व्रत धर्म आदि का फल प्राप्त नहीं होगा आज से गणेश को सभी का अध्यक्ष घोषित किया जाता है प्रथम पूज्य होने के कारण आज से तुम मेरे सभी गणों के भी अध्यक्ष बनोगे मेरा आशीर्वाद है संसार में कोई भी तुम्हारा सामना नहीं कर सकेगा और फिर सभी देवी देवता बालक गणेश को अपना अपना आशीर्वाद देते हैं बालक गणेश सभी देवी

(10:45) देवताओं को नमन करते हैं भगवान भोलेनाथ और मां पार्वती बालक गणेश को अपने हृदय से लगा लेते हैं उस दिन से गौरी पुत्र गणेश प्रथम पूजनीय हो गए संसार में कोई भी शुभ कार्य करने से पहले भगवान गणेश की पूजा होती है उसके पश्चात ही कोई मंगल कार्य की शुरुआत होती है


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