Durga Saptashati Paath Adhyay 8 दुर्गा सप्तशती आठवाअध्याय Durga SaptashatiPath Adhyay 8 #durgasaptashati

 

Durga Saptashati Paath Adhyay   8 : दुर्गा सप्तशती आठवां अध्याय

Durga Saptashati Paath Adhyay

 8 : दुर्गा सप्तशती आठवां अध्याय

 

माता रानी की कृपा हम सब भक्तों पर बनी रहे, इसी की हम कामना करते है| नवरात्री के नौ दिनों में विधि विधान से माँ दुर्गा की उपासना एवं प्रार्थना की जाती है| माँ  दुर्गा की पूजा उपासना में भक्त दुर्गा सप्तशती का पाठ बहुत श्रद्धा के साथ करते है| दुर्गा सप्तशती के 13  अध्याय है जिन में माँ आंबे जी की महिमा का वर्णन विस्तार से बताया गया है माना जाता है की दुर्गा सप्तशती पाठ से उत्तम फल की प्राप्ति होती है| अगर आप संस्कृत में पाठ नहीं कर सकते तो आप सरल हिंदी में इस पाठ को पढ़ सकते है

दुर्गा सप्तशती का पाठ करने के लिए, सबसे पहले नवार्ण मंत्र, कवच, कीलक और अर्गला स्तोत्र का पाठ करना चाहिएइसके बाद दुर्गा सप्तशती का पाठ शुरू करना चाहिए

दुर्गा सप्तशती का पाठ करने से पहले, श्रीदुर्गा सप्तशती की पुस्तक को साफ़ जगह पर लाल कपड़ा बिछाकर रखना चाहिए. इसके बाद, कुमकुम, चावल, और फूल से पूजा करनी चाहिए. इसके बाद, अपने माथे पर रोली लगाकर पूर्वाभिमुख होकर तत्व शुद्धि के लिए चार बार आचमन करना चाहिए

मान्यता है कि अगर नौ दिनों तक दुर्गा सप्तशती का नियमपूर्वक पाठ किया जाए, तो भगवती अति प्रसन्न होती हैं और भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं.

दुर्गा सप्तशती का पहला अध्याय, माँ आनंदेश्वरी के बारे में हैइसमें बताया गया है कि कैसे एक व्यक्ति अकेला और दुखी होकर जंगल में आता हैवह अपने परिवार के बारे में कुछ नहीं जानता और यह भी नहीं जानता कि उसके बच्चे सदाचारी हैं या दुराचारी

मान्यता है कि दुर्गा सप्तशती का पहला अध्याय पढ़ने से मानसिक और शारीरिक सुख मिलता है. वहीं, दूसरा अध्याय कोर्ट-कचहरी से जुड़े मामलों में विजय दिलाता है. तीसरे अध्याय से शत्रु बाधा दूर होती है. तो आईये श्री दुर्गा सप्तशती पाठ का अध्याय 8 सुनते है

 

Durga Saptashati Paath Adhyay

8 : दुर्गा सप्तशती आठवां अध्याय

 

Durga Saptashati Paath

 

Durga Saptashati Paath Adhyay   8 : दुर्गा सप्तशती आठवां अध्याय

(रक्तबीज वध)

 

 

Durga Saptashati Paath महर्षि मेधा बोले- चण्ड और मुण्ड नामक असुरों के मारे जाने से और बहुतसी सेना के नष्ट हो जाने से असुरों के राजा, प्रतापी शुम्भ ने क्रोध युक्त होकर अपनी सम्पूर्ण सेना को युद्ध के लिए तैयार होने की आज्ञा दी उसने कहा- अब उदायुध नामक छियासी असुर सेनापति अपनी सेनाओं के साथ युद्ध के लिए जायें,

और कम्बू नामक चौरासी सेनापति भी युद्ध के लिए जायें और कोटि वीर्य नामक पचास सेनापति और धौम्रकुल नाम के सौ सेनापति प्रस्थान करें, कालक, दोह्र्द, मोर्य और कालकेय यह दैत्य भी मेरी आज्ञा से सजकर युद्ध के लिए कूँच करें, भयानक शासन करने वाला असुरों का स्वामी शुम्भ इस प्रकार आज्ञा देकर बहुत बड़ी सेना के साथ युद्ध के लिए चला।

उसकी सेना को अपनी ओर आता देखकर चण्डिका ने अपनी धनुष की टंकोर से पृथ्वी और आकाश के बीच का भाग गूंजा दिया। हे राजन ! इसके पश्चात देवी के सिंह ने दहाडनय दैत्यों के नाश के लिए और देवताओं के हित के लिए ब्रम्हा, शिव, कार्तिकेय, विष्णु तथा इंद्र आदि देवों की शक्तियां जो अत्यंत पराक्रम और  से सम्पन्न थीं, उनके शरीर से निकल कर उसी रूप में चण्डिका देवी  पास गईं।

 

जिस देवता का जैसा रूप था, जैसे आभूषण थे और जैसा वाहन था, वैसा ही रूप, आभूषण और वाहन लेकर, उन देवताओं की शक्तियां दैत्यों से युद्ध करने के लिए आईं।

 Durga Saptashati Path

वृषभ पर सवार होकर, हाथ में त्रिशूल लेकर, महानाग का कंकण पहन कर और चंद्ररेखा से भूषित होकर भगवान शंकर की शक्ति सिंहनी भी आई, उसकी गर्दन के झटकों से आकाश के तारे टूट पड़ते थे और इसी प्रकार देवराज इंद्र की शक्ति ऐन्द्री भी ऐरावत के ऊपर सवार होकर आई, पश्चात इन देव शक्तियों से घिरे हुए भगवान शंकर ने चंडिका से कहा- मेरी प्रसन्नता के लिए तुम शीघ्र ही इन असुरों को मारो।

इसके पश्चात देवी के शरीर में से अत्यंत उग्र रूप वाली और सैकड़ों गीदड़ियों के समान आवाज़ करने वाली चंडिका शक्ति प्रकट हुई, उस अपराजिता देवी ने धूमिल जटा वाले भगवान शंकर जी से कहा- हे प्रभो ! आप मेरी ओर से दूत बनकर शुम्भ और निशुम्भ के पास जाइये और उन अत्यंत गर्वीले दैत्यों से कहिये

 

तथा उनके अतिरिक्त और भी जो दैत्य वहाँ युद्ध के लिए उपस्थित हों, उनसे भी कहिये- जो तुम्हें अपने जीवित रहने की इच्छा हो तो त्रिलोकी का राज्य इंद्र को दे दो, देवताओं को उनका यज्ञ भाग मिलना आरंभ हो जाय और तुम पाताल को लौटे जाओ, किन्तु यदि बल के गर्व से तुम्हारी लड़ने की इच्छा हो तो फिर जाओ, तुम्हारे माँस से मेरीयोगिनियां तृप्त होगीं। 

चूँकि उस देवी ने भगवान शंकर को दूत के कार्य में नियुक्त किया था, इसलिए वह संसार में शिवदूती के नाम से विख्यात हुई।

भगवान शंकर से देवी का सन्देश पाकर उन दैत्यों के क्रोध की सीमा रही। युद्ध प्रारंभ हुआ। इंद्र की शक्ति इंद्राणी जिस तरफ दौड़ती थी, उसी तरफ अपने कमण्डलु का जल छिड़क कर दैत्यों के वीर्य बल को नष्ट कर देती थी और इसी प्रकार माहेश्वरी त्रिशूल से, वैष्णवी चक्र से और अत्यंत कोपवाली कौमारी शक्ति द्वारा असुरों को मार रही थी और ऐन्द्री के बाजु के प्रहार से सैकड़ों दैत्य रक्त की नदियाँ बहाते हुए पृथवी पर सो गए

Durga Saptashati Paath Adhyay   8 : दुर्गा सप्तशती आठवां अध्याय

Durga Saptashati

वाराही ने कितने ही राक्षसों को अपनी थूथन द्वारा मृत्यु के घाट उतार दिया, दाढ़ों के अग्रभाग से कितने ही राक्षसों की छाती को चीर डाला और चक्र की चोट से कितनों ही को विदर्ण करके धरती पर डाल दिया बड़े - राक्षसों को नारसिंही अपने नखों से विदर्ण करके भक्षण रही थी, शिवदूती के प्रचंड अट्टहास से कितने ही दैत्य भयभीत होकर पृथ्वी पर गिर पड़े और उनके गिरते ही वह उनको भक्षण कर गई।

 

इस तरह क्रोध में भरे हुए मातृगणों द्वारा नाना प्रकार के उपायों से बड़े-बड़े असुरों को मरते हुए देखकर राक्षसी सेना भाग खड़ी हुई और उनको इस प्रकार भागता देखकर रक्तबीज नामक महा पराक्रमी राक्षस क्रोध में भरकर युद्ध के लिए आगे बढ़ा।

उसके शरीर से रक्त की बूँदें पृथ्वी पर जिसे ही गिरती थीं तुरन्त वैसे ही शरीर वाला तथा वैसा ही बलवान दैत्य पृथ्वी से उत्पन्न हो जाता था। रक्तबीज गदा हाथ में लेकर इंद्री के साथ युद्ध करने लगा, जब इंद्रिशाक्ति ने अपने वज्र से उसको मारा तो घायल होने के कारण उसके शरीर से बहुत सा रक्त बहने लगा और उनकी प्रत्येक बूँद से उसके सामन ही बलवान तथा महा पराक्रमी अनेकों दैत्य भयंकर रूप से प्रकट हो गए, वह सब के सब दैत्य बीज के समान ही बलवान तेज वाले थे, वह भी भयंकर अस्त्र-शस्त्र लेकर देवियों के साथ लड़ने लगे।

 Durga Saptashati in hindi

 

जब इंद्री के वज्र प्रहार से उनके मस्तक पर चोट लगी और रक्त बहने लगा तो उसमे से हज़ारों हो पुरुष उत्पन्न हो गए। वैष्णवी ने चक्र से और इंद्री ने गदा से रक्तबीज को चोट पहुचाई और वैष्णवी के चक्र से घायल होने पर उनके शरीर से जो रक्त बहा, उससे हजारों महा असुर उत्पन्न हुए, जिनके द्वारा यह सम्पूर्ण जगत व्याप्त हो गया, कौमारी ने शक्ति, से वाराही ने खड्ग से अरु माहेश्वरी ने त्रिशूल से उसको घायल किया।

इस प्रकार क्रोध में भरकर उस महादैत्य से सब मातृ शकितयों पर पृथक-पृथक गदा से प्रहार किया, और माताओं ने शक्ति तथा शूल इत्यादि से उसको जो बार-बार घायल किया, उससे सैकड़ों महादैत्य उत्पन्न हुए और इस प्रकार उस रक्तबीज के रुधिर से उत्पन्न हुए असुरों से सम्पूर्ण जगत व्याप्त हो गया जिससे देवताओं को भय हुआ,

देवताओं को भयभीत देखर चंडिका ने काली से कहा- हे चामुण्डे ! अपने मुख को बड़ा करो और मेरे शास्त्र घात से उतपन्न हुए रक्त बिंदुओं तथा रक्त बिंदुओं से उत्पन्न हुए महा- असुरों को तुम अपने इस मुख से भक्षण करती जाओ इस प्रकार रक्त बिंदुओं से उत्पन्न हुए महादैत्यों को भक्षण करती हुई तुम रण भूमि में विचरो।

Durga Saptashati Paath Adhyay   8 : दुर्गा सप्तशती आठवां अध्याय

Durga Saptashati

इस प्रकार रक्त कम होने से यह दैत्य नष्ट हो जावेगा, तुम्हारे  भक्षण करने के कारण अन्य दैत्य उत्पन्न नहीं होगें। काली से इस प्रकार कहकर चंडिका देवी ने रक्तबीज पर अपने त्रिशूल से प्र्हार किया और काली देवी ने अपने मुख में उसका रक्त ले लिया, तब उसने गदा से चंडिका पर प्रहार किया,

 

प्रहार से चंडिका को तनिक भी कष्ट हुआ, किन्तु रक्तबीज के शरीर से बहुत सा रक्त बहने लगा, लेकिन उसके गिरने के साथ ही काली ने उसको अपने मुख में ले लिया। काली के मुख में उस रक्त से जो असुर उतपन्न हुए, उनको उसने  भक्षण कर लिया और रक्त को पीती गई, तदन्तर देवी ने रक्तबीज को जिसका की खून काली ने पिया था, चंडिका  दैत्य को वज्र, बाण, खंडग और ऋष्टि इत्यादि से मार डाला।

हे राजन ! अनेक प्रकार के शस्त्रों से मारा हुआ और खून से वंचित वह महादैत्य रक्तबीज पृथ्वी पर गिर पड़ा। हे राजन! उसके गिरने से देवता अत्यंत प्रसन्न हुए और माताएं उन असुरों का रक्त पीने के पश्चात उद्धत हो कर नृत्य करने लगीं।

इति दुर्गा सप्तशती Durga Saptashati आठवां अध्याय॥

Durga-Saptashti-Chapter-8 Adhyay 8

 दुर्गा सप्तशती आठवा अध्याय 

 समाप्तम

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धन्यवाद   

 

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  1. दुर्गा सप्तशती  पहला अध्याय
  2. दुर्गा सप्तशती दूसरा अध्याय
  3.  दुर्गा सप्तशती तीसरा अध्याय
  4. दुर्गा सप्तशती चौथा अध्याय
  5.  दुर्गा सप्तशती पांचवां अध्याय 
  6. दुर्गा सप्तशती छठा अध्याय  
  7. दुर्गा सप्तशती सातवां अध्याय
  8.  दुर्गा सप्तशती आठवा अध्याय
  9. दुर्गा सप्तशती नवां अध्याय
  10. दुर्गा सप्तशती दसवां अध्याय
  11.   दुर्गा सप्तशती ग्यारहवां अध्याय 
  12. दुर्गा सप्तशती बारहवां अध्याय
  13. दुर्गा सप्तशती तेरहवां अध्याय  

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