Durga Saptashati Paath Adhyay7 दुर्गा सप्तशती सातवां अध्याय Durga Saptashati Path #Saptashatipath #durgasaptashati
Durga Saptashati Paath
Adhyay 7 : दुर्गा सप्तशती सातवां अध्याय
माता रानी की कृपा हम सब भक्तों पर बनी रहे, इसी की हम कामना करते है| नवरात्री
के नौ दिनों में विधि विधान से माँ दुर्गा की उपासना एवं प्रार्थना
की जाती है| माँ
दुर्गा की पूजा उपासना में
भक्त दुर्गा सप्तशती
का पाठ बहुत श्रद्धा
के साथ करते है| दुर्गा सप्तशती
के
13 अध्याय है जिन में माँ आंबे जी की महिमा का वर्णन विस्तार से बताया गया है माना जाता है की दुर्गा सप्तशती पाठ से उत्तम फल की प्राप्ति होती है| अगर आप संस्कृत में पाठ नहीं कर सकते तो आप सरल हिंदी में इस पाठ को पढ़ सकते है|
दुर्गा सप्तशती का पाठ करने के लिए, सबसे पहले नवार्ण मंत्र, कवच, कीलक और अर्गला स्तोत्र का पाठ करना चाहिए. इसके बाद दुर्गा सप्तशती का पाठ शुरू करना चाहिए.
दुर्गा सप्तशती का पाठ करने से पहले, श्रीदुर्गा सप्तशती की पुस्तक को साफ़ जगह पर लाल कपड़ा बिछाकर रखना चाहिए. इसके बाद, कुमकुम, चावल, और फूल से पूजा करनी चाहिए. इसके बाद, अपने माथे पर रोली लगाकर पूर्वाभिमुख होकर तत्व शुद्धि के लिए चार बार आचमन करना चाहिए.
मान्यता है कि अगर नौ दिनों तक दुर्गा सप्तशती का नियमपूर्वक पाठ किया जाए, तो भगवती अति प्रसन्न होती हैं और भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं.
दुर्गा सप्तशती का पहला अध्याय, माँ आनंदेश्वरी के बारे में है. इसमें बताया गया है कि कैसे एक व्यक्ति अकेला और दुखी होकर जंगल में आता है. वह अपने परिवार के बारे में कुछ नहीं जानता और यह भी नहीं जानता कि उसके बच्चे सदाचारी हैं या दुराचारी.
मान्यता है कि दुर्गा सप्तशती का पहला अध्याय पढ़ने से मानसिक और शारीरिक सुख मिलता है. वहीं, दूसरा अध्याय कोर्ट-कचहरी से जुड़े मामलों में विजय दिलाता है. तीसरे अध्याय से शत्रु बाधा दूर होती है. तो आईये श्री दुर्गा सप्तशती पाठ का अध्याय 7 सुनते है,
Durga Saptashati Paath Adhyay
7 : दुर्गा सप्तशती सातवां अध्याय
Durga Saptashati Paath
(चण्ड और मुण्ड का वध)
Durga Saptashati Paath महर्षि मेधा ने कहा- दैत्यराज
की
आज्ञा
पाकर
चण्ड
और
मुण्ड
चतुरंगिनी
सेना
को
साथ
लेकर
हथियार
उठाये
हुए
देवी
से
लड़ने
के
लिए
चल
दिये।
हिमालय
पर्वत
पर
पहुंच
कर
उन्होंने
मुस्कुराती
हुई
देवी
जो
सिंह
पर
बैठी
हुई
थी
देखा,
जब
असुर
उनको
पकड़ने
के
लिए
तलवारें
लेकर
उनकी
ओर
बढे,
तब अम्बिका को
उन
पर
बड़ा
क्रोध
आया
और
मारे
क्रोध
के
उनका
मुख
काला
पड़
गया,
उनकी भृकुटियां
चढ़
गईं
और
उनके
ललाट
में
से
अत्यंत
भयंकर
तथा
अत्यंत
विस्तृत
मुख
वाली,
लाल
आँखों
वाली
काली
प्रकट
हुई
जो
कि
अपने
हाथों
में
तलवार
और
पाश
लिए
हुई
थी,
वह
विचित्र
खड्ग
धारण
किये
हुए
थी
तथा
चीते
के
चर्म
की
साडी
एवं
नरमुण्डों
की
माला
पहन
रखी
थी।
उसका मांस
सूखा
हुआ
था
और
शरीर
केवल
हडिड्यों
का
ढांचा
था
और
जो
भयंकर
शब्द
से
दसों
दिशाओं
को
पूर्ण
कर
रही
थी,
वह
असुर
सेना
पर
टूट
पड़ी
और
दैत्यों
को
भक्षण
करने
लगी,
वह
पशवर
रक्षकों,
अंकुशधारी
महावतों,
हाथियों
पर
सवार
योद्धाओं
और
घण्टा
सहित
हाथियों
को
एक
हाथ
से
पकड़
पकड़
कर
अपने
मुँह
में
डाल
रही
थी
और
इसी प्रकार वह घोड़ो, रथों, सारथियों व रथों में बैठे हुए सैनिकों को मुँह में डालकर भयानक रूप से चबा रही थी, किसी के केश पकड़कर, किसी की गर्दन पकड़कर, किसी को पैरों से दबाकर और किसी दैत्य को छाती से मसलकर मार रही थी, वह दैत्य के छोड़े हुए बड़े - बड़े अस्त्र – शस्त्रों को मुँह में पकड़कर
और क्रोध
में
भर
उनको
दांतो
से
पीस
रही
थी,
उसने
कई
बड़े-
बड़े असुर
भक्षण
कर
डाले,
कितनों
को
रौंद
डाला
और
कितनी
उसकी
मार
के
मारे
भाग
गए,
कितनों
को
उसने
तलवार
से
मार
डाला,
कितनों
को
अपने
दांतों
से
समाप्त
कर
दिया,
और
इस
प्रकार
से देवी ने
क्षणभर
में
सम्पूर्ण
दैत्य
सेना
को
नष्ट
कर
दिया।
Durga
Saptashati Path
यह देख
महा
पराक्रमी
चण्ड
काली
देवी
की
ओर
लपका
और
मुण्ड
ने
भी
देवी
पर
अपने
भयानक
बाणों
की
वर्षा
आरंभ
कर
दी
और
अपने
हजारों
चक्र
उस
पर
छोड़े,
उस
समय
वह
चमकते
हुए
बाण
व
चक्र
देवी
के
मुख
में
प्रविष्ट
हुए
इस
प्रकार
दीख
रहे
थे,
जैसे
मानो
बहुत
से
सूर्य
मेघों
की
घटा
में
प्रविष्ट
हो
रहे
हों,
इसके
पश्चात
भयंकर
शब्द
के
साथ
काली
ने
अत्यंत
जोश
में
भरकर
विकट अट्टहास किया।
उसका भंयकर
मुख
देखा
नहीं
जाता
था,
उसके
मुख
में
श्वेत
दांतो
की
पंक्ति
चमक
रही
थी,
फिर
उसने
तलवार
हाथ
में
लेकर
(हूँ)
शब्द
कहकर
चण्ड
के
ऊपर
आक्रमण
किया
और
उसके
केश
पकड़
कर
उसका
सिर
काटकर
अलग
कर
दिया।
चण्ड को
मरा
हुआ
देखकर
मुण्ड
देवी
की
ओर
लपका,
परन्तु
देवी
ने
क्रोध
में
भर
उसे
भी
अपनी
तलवार
से यमलोक पहुंचा
दिया,
चण्ड
और
मुण्ड
को
मरा
हुआ
देखर
उसकी
बाकी
बची
हुई
सेना
वहाँ
से
भाग
गई।
Durga Saptashati
इसके पश्चात
काली
चण्ड
और
मुण्ड
के
कटे
हुए
सिरों
को
लेकर
चंडिका
के
पास
गई
और
प्रचंड
अट्टहास
के
साथ
कहने
लगी
– हे देवी
! चण्ड और
मुण्ड
दोनों
को
मारकर
तुम्हारी
भेंट
कर
दिया
है,
अब
शुम्भ
और
निशुम्भ
का
तुमको
स्वयं
वध
करना
है।
Durga Saptashati Paath महर्षि मेधा ने कहा- वहाँ
लाये
हुए
चण्ड
और
मुण्ड
के
सिरों
को
देखकर
कल्याणमयी
चण्डी
ने
काली
से
मधुर
वाणी
में
कहा-
हे
देवी
! तुम चूंकी
चण्ड
और
मुण्ड
को
मेरे
पास
लेकर
आई
हो,
अतः
संसार
में
चामुंडा
के
नाम
से
तुम्हारी
ख्याति
होगी
।
॥ इति
दुर्गा
सप्तशती
Durga Saptashati सातवां
अध्याय॥
Durga-Saptashti-Chapter-7-Satva Adhyay सातवा अध्याय समाप्तम
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- दुर्गा सप्तशती दूसरा अध्याय
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