Durga Saptashati Path Adhyay 2| दुर्गा सप्तशती पाठ अध्याय 2| Durga Saptashti Path chapter 2

 

Durga Saptashati Paath Adhyay 2 : श्री दुर्गा सप्तशती दूसरा अध्याय

Durga Saptashati Paath Adhyay 2 :
श्री दुर्गा सप्तशती दूसरा अध्याय

             Durga Saptashati Paath

             अथ श्री दुर्गा सप्तशती

माता रानी की कृपा हम सब भक्तों पर बनी रहे, इसी की हम कामना करते है| नवरात्री के नौ दिनों में विधि विधान से माँ दुर्गा की उपासना एवं प्रार्थना की जाती है| माँ  दुर्गा की पूजा उपासना में भक्त दुर्गा सप्तशती का पाठ बहुत श्रद्धा के साथ करते है| दुर्गा सप्तशती के 13  अध्याय है जिन में माँ आंबे जी की महिमा का वर्णन विस्तार से बताया गया है माना जाता है की दुर्गा सप्तशती पाठ से उत्तम फल की प्राप्ति होती है| अगर आप संस्कृत में पाठ नहीं कर सकते तो आप सरल हिंदी में इस पाठ को पढ़ सकते है

दुर्गा सप्तशती का पाठ करने के लिए, सबसे पहले नवार्ण मंत्र, कवच, कीलक और अर्गला स्तोत्र का पाठ करना चाहिएइसके बाद दुर्गा सप्तशती का पाठ शुरू करना चाहिए

दुर्गा सप्तशती का पाठ करने से पहले, श्रीदुर्गा सप्तशती की पुस्तक को साफ़ जगह पर लाल कपड़ा बिछाकर रखना चाहिए. इसके बाद, कुमकुम, चावल, और फूल से पूजा करनी चाहिए. इसके बाद, अपने माथे पर रोली लगाकर पूर्वाभिमुख होकर तत्व शुद्धि के लिए चार बार आचमन करना चाहिए

मान्यता है कि अगर नौ दिनों तक दुर्गा सप्तशती का नियमपूर्वक पाठ किया जाए, तो भगवती अति प्रसन्न होती हैं और भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं.

दुर्गा सप्तशती का पहला अध्याय, माँ आनंदेश्वरी के बारे में हैइसमें बताया गया है कि कैसे एक व्यक्ति अकेला और दुखी होकर जंगल में आता हैवह अपने परिवार के बारे में कुछ नहीं जानता और यह भी नहीं जानता कि उसके बच्चे सदाचारी हैं या दुराचारी

मान्यता है कि दुर्गा सप्तशती का पहला अध्याय पढ़ने से मानसिक और शारीरिक सुख मिलता है. वहीं, दूसरा अध्याय कोर्ट-कचहरी से जुड़े मामलों में विजय दिलाता है. तीसरे अध्याय से शत्रु बाधा दूर होती है.



Durga Saptashati Paath Adhyay 2 :
श्री दुर्गा सप्तशती दूसरा अध्याय

Durga Saptashati Adhyay 2

 

Durga Saptashati Paath Adhyay 2 : श्री दुर्गा सप्तशती दूसरा अध्याय

देवताओं के तेज से देवी का प्रादुर्भाव और महिषासुर की सेना का वध।

Durga Saptashati

महर्षि मेघा बोले — प्राचीन काल में देवताओं और असुरों में पूरे सौ  वर्षों तक घोर युद्ध हुआ था उनमें असुरों का स्वामी महिषासुर था और देवराज इंद्र देवताओं के नायक थे इस युद्ध में देवताओं की सेना परास्त हो गई थी और इस प्रकार सम्पूर्ण देवताओं को जीत महिषासुर इंद्र बन बैठा था।

युद्ध के पश्चात हारे हुए देवता प्रजापति श्रीब्रह्मा को साथ लेकर उस स्थान पर पहुँचे, जहाँ पर कि भगवान शंकर विराजमान थे देवताओं ने अपनी हार का सारा वृतान्त भगवान श्रीविष्णु और शंकरजी से कह सुनाया। 

 

वह कहने लगेहे प्रभुमहिषासुर सूर्य, इंद्र, अग्नि, वायु, चंद्रमा, यम, वरुण तथा अन्य देवताओं के सब अधिकार छीनकर सबका अधिष्ठाता स्वयं बन बैठा है। उसने समस्त देवताओं को स्वर्ग से निकाल दिया है। समस्त देवता   मनुष्यों की तरह पृथ्वी पर विचर रहे हैं।

Durga Saptashati Path Adhyay2 दुर्गा सप्तशती पाठ अध्याय2

Durga Saptashati

दैत्यों की सारी करतूत हमने आपको सुना दी है और आपकी शरण में इसलिए आए हैं कि आप उनके वध का कोई उपाय सोचें

देवताओं की बातें सुनकर भगवान श्रीविष्णु और शंकर जी को दैत्यों पर बड़ा गुस्सा आया उनकी भौहें तन गई और आँखे लाल हो गई गुस्से में भरे हुए भगवान विष्णु के मुख से बड़ा भारी तेज निकाला और उसी प्रकार का तेज भगवान शंकरजी, ब्रह्मा जी और इंद्र आदि दूसरे देवताओं के मुख से प्रकट हुआ।

 

फिर वह सारा तेज एक में मिल गया और तेज का पुंज वह ऐसे दीखता था, जैसे कि जाज्वल्यमान पर्वत हो। देवताओं ने देखा कि उस पर्वत की ज्वाला चारों ओर फैली हुई थी और देवताओं के शरीर से प्रकट हुए तेज की किसी अन्य तेज से तुलना नहीं हो सकती थी

एक स्थल पर इकठ्ठा होने पर वह तेज एक देवी के रूप में परिवर्तित हो गया और अपने प्रकाश से तीनों लोकों में व्याप्त जान पड़ा। वह भगवान शंकर जी का तेज था, उससे देवी का मुख प्रकट हुआ। यमराज के तेज से उसके शिर के बाल बने, भगवान विष्णु जी के तेज से उसकी भुजाएं बनीं ,

चन्द्रमा के तेज से दोनों स्तन और इंद्र के तेज से जंघा और पिंडली तथा पृथ्वी के तेज से नितम्ब भाग बना, ब्रह्म के तेज से दोनों चरण और सूर्य के तेज से उसकी उँगलिया पैदा हुई और वसुओं के तेज से हाथों की अंगुलियाँ एवम कुबेर के तेज से नासिका बनी प्रजापति के तेज से उसके दांत और अग्नि के तेज से उसके नेत्र बने, सन्ध्या के तेज से उसकी भौहें और वायु के तेज से उसके कान प्रकट हुए थे इस प्रकार उस देवी का पादुर्भाव हुआ।

महिषासुर से पराजित देवता उस देवी को देखकर अत्यंत प्रसन्न हुए। भगवान शंकर जी ने अपने त्रिशूल में से एक त्रिशूल निकाल कर उस देवी को दिया और भगवान विष्णु ने अपने चक्र में से एक चक्र निकाल कर देवी को दिया, वरुण ने अपने चक्र में से एक चक्र निकाल कर उस देवी को दिया, वरुण ने देवी को शंख भेंट किया।

Durga Saptashati

 

अग्नि ने इसे शक्ति दी, वायु ने उसे धनुष और बाण दिए, सहस्त्र नेत्रों वाले श्रीदेवराज इंद्र ने उसे अपने वज्र से उत्पन्न करके वज्र दिया और ऐरावत हाथी का एक घण्टा उतारकर देवी को भेंट किया, यमराज ने उसे कालदंड में से एक दंड दिया, वरुण ने उसे पाश दिया, प्रजापति ने स्फटिक की माला दी और ब्रह्मा जी ने उसे कमण्डलु दिया,

सूर्य ने देवी के समस्त रोमों में अपनी किरणों का तेज भर दिया, काल ने उसे चमकती हुई ढाल और तलवार दी तथा उज्ज्वल हार और दिव्य वस्त्र उसे भेंट किये और इनके साथ ही उसने दिव्य चूड़ामणि दी, दो कुंडल, कंकण, उज्जवल अर्धचन्द्र, बाँहों के लिए बाजूबंद,

चरणों के लिए नूपुर, गले के लिए सुंदर  हंसली और अंगुलियों के लिए रत्नों की बनी हुई अंगूठियां उसे दीं , विश्वकर्मा ने उनको फरसा दिया और उसके साथ ही कई प्रकार के अस्त्र और अभेद कवच दिए और इसके अतिरिक्त उसने उसे कभी कुम्ल्हाने वाले सुंदर कमलों की मालाएं भेंट की, समुद्र ने सुंदर कमल का फूल भेंट किया

हिमालय ने सवारी के लिए सिंह और तरह- तरह के रत्न देवी को भेंट किए, यक्षराज कुबेर ने मधु से भरा हुआ पात्र और शेषनाग ने उन्हें बहुमूल्य मणियों से विभूषित नागहार भेंट किया इसी तरह दूसरे देवताओं ने भी उसे आभूषण और अस्त्र देकर उसका सम्मान किया।

इसके पश्चात देवी ने उच्च स्वर से गर्जना की उसके इस भयंकर नाद से आकाश गूंज उठा देवी का वह उच्च स्वर से किया हुआ सिंघनाद समा सका, आकाश उनके सामने छोटा प्रतीत होने लगा। उससे बड़े जोर की प्रतिध्वनि हुई, जिससे समस्त विश्व में हलचल मच गई और समुद्र कांप उठे, पृथ्वी डोलने लगी और सबके सब पर्वत हिलने लगे

Durga Saptashati

Durga Saptashati

देवताओं ने उस समय प्रसन्न हो सिंह वाहिनी जगत्मयी देवी ने कहा- देवी ! तुम्हारी जय हो इसके साथ महर्षि ने भक्ति भाव से विनम्र होकर उनकी स्तुति की सम्पूर्ण त्रिलोकी को शोक मग्न देखकर दैत्यगण अपनी सेनाओं को साथ लेकर और हथियार आदि सजाकर उठ खड़े हुए, महिषासुर के क्रोध की कोई सीमा नहीं थी।

उसने क्रोध में भर कर कहा- ‘यह सब क्या उत्पात है, फिर वह अपनी सेना के साथ उस और दौड़ा, जिस ओर से भयंकर नाद का शब्द सुनाई दिया था और आगे पहुँच का उसने देवी को देखा, जो कि  अपनी प्रभा से तीनों लोकों को प्रकाशति कर रही थीं

उसके चरणों के भार से पृथ्वी दबी जा रही थी। माथे के मुकुट से आकाश में एक रेखासी  बन रही थी और उसके धनुष की टंकोर से सब लोग क्षुब्ध हो रहे थे, देवी अपनी सहस्त्रो भुजाओं को सम्पूर्ण दिशाओं में फैलाये खड़ी थी इसके पश्चात उनका दैत्यों के साथ युद्ध छिड़ गया और कई प्रकार के अस्त्र- शस्त्रों से सब की सब दिशाएँ उद्भाषित होने लगीं।

महिषासुर की सेना का सेनापति चिक्षुर नामक एक महान असुर था, वह आगे बढ़कर देवी के साथ युद्ध करने लगा और दूसरे दैत्यों की चतुरंगणी सेना को साथ लेकर चामर भी लड़ने लगा और साठ हज़ार महारथियों को साथ लेकर उदग्र नामक महादैत्य आकर युद्ध करने लगा और महाहनु नामक असुर एक करोड़ रथिओं को साथ लेकर,

 

असिलोमा नमक असुर पाँच करोड़ सैनिकों को साथ लेकर युद्ध करने लगा, वाष्कल नामक असुर साठ लाख असुरों के साथ युद्ध में डटा , विडाल नामक असुर एक करोड़ रथिओं सहित लड़ने को तैयार था, इन सबके अतिरिक्त और भी हज़ारों असुर हाथी और घोडा साथ लेकर लड़ने लगे और इन सबके पश्चात महिषासुर करोड़ो रथों, हाथियों और घोड़ों सहित वहां आकर देवी के साथ लड़ने लगा।

सभी असुर तोमर, भिन्दिपाल, शक्ति, मूसल, खड्ग, फरसों, पट्टियों के साथ रणभूमि में देवी के साथ युद्ध करने लगे। कई शक्तियां फेंकने लगे और कोई अन्य शस्त्र आदि, इसके पश्चात सबके सब दैत्य अपनी- अपनी तलवारें हाथों में लेकर देवी की ओर दौड़े और उसे मार डालने का उधोग करने लगे

मगर देवी ने क्रोध में भरकर खेल ही खेल में उनके सब अस्त्रोंशस्त्रों को काट दिया इसके पश्चात ऋषियों और देवताओं ने देवी की स्तुति आरंभ कर दी और वह प्रसन्न होकर असुरों के शरीरों पर अस्त्र- शस्त्रों की वर्षा करती रही देवी का वाहन भी क्रोध में भरकर दैत्य सेना के बीच इस प्र्कार विचरने लगा जैसे कि वन में दावानल फैल रहा हो Durga Saptashati

 

युद्ध करती हुई देवी ने क्रोध में भर जितने श्वासों को छोड़ा, वह तुंरत ही सैकड़ो हज़ारों गणों के रूप में परिवर्तित हो गये फरसे, भिन्द्रीपाल, खड्ग इत्यादि अस्त्रों के साथ दैत्यों से युद्ध करने लगे, देवी की शक्ति से बढ़े हुए वह गण दैत्यों का नाश करते हुए ढोल, शंख मृदंग आदि बजा रहे थे,

तदन्तर देवी ने त्रिशूल, गदा, शक्ति, खड्ग इत्यादि से सहस्त्रों असुरों को मार डाला, कितनो को घंटे की भयंकर आवाज़ से ही यमलोक पहुँचा दिया, कितनों ही असुरों को उसने पाश में बांधकर पृथ्वी पर धर घसीटा, कितनों को अपनी तलवार से टुकड़े-टुकड़े कर दिया और कितनों को गदा की चोट से धरती पर सुला दिया,

कई दैत्य मूसल की मार से घायल होकर रक्त वमन करने लगे और कई शूल से छाती फट जाने के कारण पृथ्वी पर लेट गए और कितनों की बाण वर्षा से कमर टूट गई देवताओं को पीड़ा देने वाले दैत्य कटकट कर मरने लगे।

 

कितनों की बाहें अलग हो गई, कितनों की ग्रीवायें कट गईं, कितनों के सिर कटकर दूर भूमि पर लुढ़क गये, कितनों के शरीर बीच में से कट गए और कितनों की जंघाए कट गयीं और वह पृथवी पर गिर पड़े। कितने ही सिरों पैरों के कटने पर भी भूमि पर से उठ खड़े हुए और शस्त्र हाथ में लेकर देवी से लड़ने लगे

और कई दैत्यगण भूमि में बाजों की ध्वनि के साथ नाच रहे थे, कई असुर जिनके सिर कट चुके थे, बिना सिर के धड़ से ही हाथ में शस्त्र लिए हुए लड़ रहे थे, दैत्य रह-रहकर ठहरो ! ठहरो ! कहते हुए देवी को युद्ध के लिए ललकार रहे थे।

Durga Saptashati

 

जहाँ पर यह घोर संग्राम हुआ था वहाँ की भूमि रथ, हाथी, घोड़े और असुरों की लाशों से भर गई थी और असुर सेना के बीच में रक्तपात होने के कारण रूधिर की नदियां बह रही थीं  और इस तरह देवी ने असुरों की विशाल सेना को क्षण भर में इस तरह से नष्ट कर डाला, जैसे तृण काष्ठ के बड़े समूह को अग्नि नष्ट कर डालती है और

देवी का सिंह भी गर्दन के बालों को हिलाता हुआ और बड़ा भारी शब्द करता हुआ असुरों के शरीर से मानो उनके प्राणों को खोज कर रहा था वहाँ देवी के गणों ने जब दैत्यों के साथ युद्ध किया तो देवताओं ने प्रसन्न होकर आकाश से उन पर पुष्प वर्षा की।

॥इति श्री दुर्गा सप्तशती Durga Saptashati दूसरा अध्याय॥

Durga Saptashti -Chapter 2- दूसरा अध्याय समाप्त 

 

दोस्तोंअगर आपको यह स्टोरी अच्छी लगी हो तो इसे लाइक जरूर करेंफेसबुक पर शेयर जरूर करें।इसी तरह के और भी आर्टिकल पढ़ने के लिए जुड़े रहें हमसे अपने विचार हमें आर्टिकल के ऊपर कमेंट बॉक्स में जरूर भेजें।


 

  दोस्तोंहम आशा करते हैं कि हमारे द्वारा दी गई  जानकारी आपके लिए बहुत उपयोगी होगी और आप इससे बहुत लाभ उठाएंगे। हम आपके बेहतर भविष्य की कामना करते हैं और आपका हर सपना सच हो।

धन्यवाद   


डिसक्लेमर:

'इस लेख में दी गई जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। सूचना के विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/धार्मिक मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संकलित करके यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना हैपाठक या उपयोगकर्ता इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह से उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता या पाठक की ही होगी।'

 यहां दी गई जानकारी ज्योतिष पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है।हम इसकी पुष्टि नहीं करते है। किसी भी उपाय को करने से पहले संबंधित विषय के एक्सपर्ट से सलाह अवश्य लें।

  1. दुर्गा सप्तशती  पहला अध्याय
  2. दुर्गा सप्तशती दूसरा अध्याय
  3.  दुर्गा सप्तशती तीसरा अध्याय
  4. दुर्गा सप्तशती चौथा अध्याय
  5.  दुर्गा सप्तशती पांचवां अध्याय 
  6. दुर्गा सप्तशती छठा अध्याय  
  7. दुर्गा सप्तशती सातवां अध्याय
  8.  दुर्गा सप्तशती आठवा अध्याय
  9. दुर्गा सप्तशती नवां अध्याय
  10. दुर्गा सप्तशती दसवां अध्याय
  11.   दुर्गा सप्तशती ग्यारहवां अध्याय 
  12. दुर्गा सप्तशती बारहवां अध्याय
  13. दुर्गा सप्तशती तेरहवां अध्याय  

 

 

कोई टिप्पणी नहीं

Blogger द्वारा संचालित.