Durga Saptashati Paath Adhyay 11 दुर्गा सप्तशती ग्यारहवां अध्याय Durga Saptashati Path Adhyay 11

 

Durga Saptashati Paath Adhyay 11 :  दुर्गा सप्तशती ग्यारहवां अध्याय

Durga Saptashati Paath Adhyay 11 :

दुर्गा सप्तशती ग्यारहवां अध्याय

 

माता रानी की कृपा हम सब भक्तों पर बनी रहे, इसी की हम कामना करते है| नवरात्री के नौ दिनों में विधि विधान से माँ दुर्गा की उपासना एवं प्रार्थना की जाती है| माँ  दुर्गा की पूजा उपासना में भक्त दुर्गा सप्तशती का पाठ बहुत श्रद्धा के साथ करते है| दुर्गा सप्तशती के 13  अध्याय है जिन में माँ आंबे जी की महिमा का वर्णन विस्तार से बताया गया है माना जाता है की दुर्गा सप्तशती पाठ से उत्तम फल की प्राप्ति होती है| अगर आप संस्कृत में पाठ नहीं कर सकते तो आप सरल हिंदी में इस पाठ को पढ़ सकते है

दुर्गा सप्तशती का पाठ करने के लिए, सबसे पहले नवार्ण मंत्र, कवच, कीलक और अर्गला स्तोत्र का पाठ करना चाहिएइसके बाद दुर्गा सप्तशती का पाठ शुरू करना चाहिए

दुर्गा सप्तशती का पाठ करने से पहले, श्रीदुर्गा सप्तशती की पुस्तक को साफ़ जगह पर लाल कपड़ा बिछाकर रखना चाहिए. इसके बाद, कुमकुम, चावल, और फूल से पूजा करनी चाहिए. इसके बाद, अपने माथे पर रोली लगाकर पूर्वाभिमुख होकर तत्व शुद्धि के लिए चार बार आचमन करना चाहिए

मान्यता है कि अगर नौ दिनों तक दुर्गा सप्तशती का नियमपूर्वक पाठ किया जाए, तो भगवती अति प्रसन्न होती हैं और भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं.

दुर्गा सप्तशती का पहला अध्याय, माँ आनंदेश्वरी के बारे में हैइसमें बताया गया है कि कैसे एक व्यक्ति अकेला और दुखी होकर जंगल में आता हैवह अपने परिवार के बारे में कुछ नहीं जानता और यह भी नहीं जानता कि उसके बच्चे सदाचारी हैं या दुराचारी

मान्यता है कि दुर्गा सप्तशती का पहला अध्याय पढ़ने से मानसिक और शारीरिक सुख मिलता है. वहीं, दूसरा अध्याय कोर्ट-कचहरी से जुड़े मामलों में विजय दिलाता है. तीसरे अध्याय से शत्रु बाधा दूर होती है. तो आईये श्री दुर्गा सप्तशती पाठ का अध्याय 11 सुनते है

Durga Saptashati Paath

 

Durga Saptashati Paath Adhyay 11 :  दुर्गा सप्तशती ग्यारहवां अध्याय

(देवताओं का देवी की स्तुति करना और देवी का

देवताओं को वरदान देना)

 

महर्षि मेधा कहते हैं  दैत्य के मारे जाने पर इन्द्रादि देवता अग्नि को आगे करके कात्यायनी  देवी की स्तुति करने लगे, उस समय अभीष्ट की प्राप्ति के कारण उनके मुख खिले हुए थे।

Durga Saptashati Paath देवताओं ने कहा हे शरणागतों के दुःख दूर करने वाली देवी! तुम प्रसन्न होओ, हे सम्पूर्ण जगत की माता ! तुम प्रसन्न होओ विश्वेश्वरि ! तुम विश्व की रक्षा करो क्योंकि तुम इस चर और अचर की ईश्वरी हो। हे देवी! तुम सम्पूर्ण जगत की आधार रूप हो, क्योंकि तुम पृथ्वी रूप में भी स्थित हो और अत्यंत पराक्रम वाली देवी हो, तुम विष्णु की शक्ति हो और विश्व की बीज परममाया हो और तुमने ही इस सम्पूर्ण जगत को मोहित कर रखा है।

 

तुम्हारे प्रसन्न होने पर ही यह पृथ्वी मोक्ष को प्राप्त होती है, हे देवी ! सम्पूर्ण विद्याएँ तुम्हारे ही भिन्न- स्वरुप हैं। इस जगत में जितनी भी  स्त्रियां हैं वह सब तुम्हारी ही मूर्तियां हैं। एक मात्र तुमने ही इस जगत को व्याप्त कर रखा है। तुम्हारी स्तुति किस प्रकार हो सकती है, क्योंकि तुम परमबुद्धि रूप हो और सम्पूर्ण प्राणीरूप स्वर्ग और मुक्ति देने वाली हो, अतः इसी रूप में तुम्हारी स्तुति की गई है

तुम्हारी स्तुति के लिए इससे बढ़कर और क्या युक्तियां हो सकती हैं, सम्पूर्ण जनों के ह्रदय में बुद्धिरूप होकर निवास करने वाली, स्वर्ग तथा मोक्ष प्रदान करने वाली है नारायणी देवी ! तुमको नमस्कार है कलाकाष्ठा आदि रूप से अवस्थाओं को परिवर्तन कीओर ले जाने वाली तथा प्राणियों का अंत करने वाली नारायणी तुमको नमस्कार है।

Durga Saptashati Path

हे नारायणी ! सम्पूर्ण मंगलों के मंगलरूप वाली ! हे शिवेसम्पूर्ण प्रयोजनों को सिद्ध करने वाली ! हे शरणागतवत्सला, तीन नेत्रों वाली गौरी ! तुमको नमस्कार है, सृष्टि, स्थिति तथा संहार की शक्तिभूता, सनातनी देवी, गुणों का आधार तथा सर्व सुखमयी नारायणी तुमको नमस्कार है !

 

हे शरण में आये हुए शरणागतों दीन दुखियों की रक्षा में तत्पर, सम्पूर्ण पीड़ाओं के हरने वाली हे नारायणी ! तुम हंसों से जुते हुए विमान पर बैठती हो तथा कुश से अभिमंत्रित जल छिड़कती रहती हो, तुम्हें नमस्कार है, माहेश्वरी रूप से त्रिशूल, चंद्रमा और सर्पों को धारण करने वाली हे महा वृषभ वाहन वाली नारायणी ! तुम्हें नमस्कार है।

मोरों तथा कुक्कुटों से घिरी रहने वाली, महाशक्ति को धारण करने वाली हे कौमारी रूपधारिणी ! निष्पाप नारायणी ! तुम्हें नमस्कार है हे शंख, चक्र, गदा और शाङ्र्ग धनुष रूप आयुधों को धारण करने वाली वैष्णवी शक्ति रूपा नारायणी ! तुम हम पर प्रसन्न होओ, तुम्हें नमस्कार है

Durga Saptashati Paath Adhyay 11 :  दुर्गा सप्तशती ग्यारहवां अध्याय

Durga Saptashati

हे दाँतो पर पृथ्वी धारण करने वाली वराह रूपिणी कल्याणमयी नारायणी ! तुम्हें नमस्कार है। हे उग्र नृसिंह रूप से दैत्यों को मारने वाली, त्रिभुवन की रक्षा में संलग्न रहने वाली नारायणी ! तुम्हें नमस्कार है। हे मस्तक पर किरीट और हाथ में महावज्र धारण करने वाली, सहस्त्र नेत्रों के कारण उज्जवल, वृत्रासुर के प्राण हरने वाली एन्द्रिशक्ति, हे नारायणी! तुम्हें नमस्कार है।

 

हे शिवदूती स्वरुप से दैत्यों के महामद को नष्ट करने वाली, हे घोररूप वाली ! हे मुख वाली, मुण्डमाला से विभूषित मुण्डमर्दिनी चामुण्डा रूपा नारायणी ! तुम्हें नमस्कार है। हे लक्ष्मी, लज्जा, महाविद्या, श्रद्धा, पुष्टि, स्वधा, ध्रुवा, महारात्रि तथा महाविद्यारूपा नारायणी ! तुमको नमस्कार है।

हे मेघा, सरस्वती, सर्वोत्कृष्ट, ऐश्वर्य रूपिणी, पार्वती, महाकाली, नियन्ता तथा इशारूपिणी नारायणी ! तुम्हें नमस्कार है। हे सर्वस्वरूप सवेर्श्वरी, सर्वशक्ति युक्त देवी ! हमारी भय से रक्षा करो, तुम्हें नमस्कार है। हे कात्यायनी ! तीनों नेत्रों से भूषित यह तेरा सौम्यमुख सब तरह के डरों से हमारी रक्षा करे, तुम्हें नमस्कार है।

Durga Saptashati Paath Adhyay 11 :  दुर्गा सप्तशती ग्यारहवां अध्याय

Durga Saptashati in hindi

हे भद्रकाली ! ज्वालाओं के समान भयंकर, अति उग्र एवं सम्पूर्ण असुरों को नष्ट करने वाला तुम्हारा त्रिशूल हमें भयों से बचावे, तुमको नमस्कार है। हे देवी ! जो अपने शब्द से इस जगत को पूरित करके दैत्यों के तेज को नष्ट करता है, वह आपका घंटा इस प्रकार हमारी रक्षा कर, जैसे कि माता अपने पुत्रों की रक्षा करती है।

हे चण्डिके! असुरों के रक्त और चर्बी से चर्चित जो आपकी तलवार है, वह हमारा मंगल करे ! हम तुमको नमस्कार करते हैं। हे देवी ! तुम जब प्रसन्न होती हो तो सम्पूर्ण रोगों को नष्ट कर देती हो और जब रुष्ट हो जाती हो तो सम्पूर्ण वांछित कामनाओं को नष्ट कर देती हो और जो मनुष्य तुम्हारी शरण में जाते हैं उन पर कभी विपत्ति नहीं आती बल्कि तुम्हारी शरण में गए हुए मनुष्य दूसरों को आश्रय देने योग्य हो जाते हैं।

 

अनेक रूपों से बहुत प्रकार की मूर्तियों को धारण करके इन धर्मद्रोही असुरों का तुमने संहार किया है, वह तुम्हारे सिवा और कौन कर सकता था ? चतुदर्श विद्याएं षट्शास्त्र और चारों वेद तुम्हारे ही प्रकाश से प्रकाशित हैं, उनमें तुम्हारा ही वर्णन है, और जहाँ राक्षस, विषैले सर्प शत्रुगण हैं, वहाँ और समुद्र के बीच में भी तुम साथ रहकर इस विश्व की रक्षा करती हो।

Durga Saptashati

हे विश्वेश्वरि ! तुम विश्व का पालन करने वाली विश्वरूपा हो, इसलिए सम्पूर्ण विश्व को धारण करती हो इसीलिए ब्रह्म, विष्णु, महेश की भी वंदनीया हो। जो भक्ति पूर्वक तुमको नमस्कार करते हैं, वह विश्व को आश्रय देने वाले बन जाते हैं। हे देवी! तुम प्रसन्न होओ और असुरों को मारकर जिस प्रकार हमारी रक्षा की है, ऐसे ही हमारे शत्रुओं से सदा हमारी रक्षा करती रहो

सम्पूर्ण जगत के पाप नष्ट कर दो और पापों तथा उनके फलस्वरूप होने वाली महामारी आदि बड़े- उपद्रवों को शीघ्र ही दूर कर दो। विश्व की पीड़ा दूर करने वाली देवी ! शरण में पड़े हुओं पर प्रसन्न होओ। त्रिलोक निवासियों की पूजनीय परमेश्वरी हम लोगों को वरदान दो।

 

Durga Saptashati Paath देवी ने कहा हे देवताओं ! मैं तुमको वर देने के लिए तैयार हूँ आपकी जैसी इच्छा हो, वैसा वर माँगा लो मैं तुमको दूँगी। देवताओं ने कहा- हे सर्वेश्वरी ! त्रिलोकी की निवासियों की समस्त पीड़ाओं को तुम इसी प्रकार हरती रहो और हमारे शत्रुओं को इसी प्रकार नष्ट करती रहो

Durga Saptashati Paath Adhyay 11 :  दुर्गा सप्तशती ग्यारहवां अध्याय

Durga Saptashati
देवी ने कहा “वैवस्वत मन्वन्तर के अठ्ठाईसवें युग में दो और महाअसुर शुम्भ और निशुम्भ उत्पन्न होंगे। उस समय मैं नन्द गोप के घर से यशोदा के गर्भ से उत्पन्न होकर विन्ध्याचल पर्वत पर शुम्भ और निशुम्भ का संहार करूगीं, फिर अत्यंत भंयकर रूप से पृथ्वी पर अवतीर्ण  वैप्रचिति नामक दानवों का नाश करुँगी।

 उन भयंकर महाअसुरों का भक्षण करते समय मेरे दन्त अनार के पुष्प के समान लाल होगें, इसके पश्चात स्वर्ग में देवता और पृथ्वी पर मनुष्य मेरी स्तुति करते हुए मुझे रक्तदंतिका कहेंगे, फिर जब सौ वर्षों तक वर्षा होगी तो मैं ऋषियों के स्तुति करने पर आयोनिज नाम से प्रकट होउंगी और अपने सौ नेत्रों से ऋषियों की ओर देखूंगी

अतः  मनुष्य शताक्षी नाम से मेरा कीर्तन करेंगे। उसी समय मैं अपने शरीर से उत्पन्न हुए, प्राणों की रक्षा करने वाले शकों द्वारा सब प्राणियों का पालन करुँगी और तब इस पृथ्वी पर शाकम्भरी के नाम से विख्यात होउंगी और इसी अवतार में मैं दुर्गा नामक महा असुर का वध करुँगी, और इससे मैं दुर्गा देवी के नाम से प्रसिद्ध होउंगी।

Durga Saptashati

 

इसके पश्चात जब मैं भयानक रूप धारण करके हिमालय निवासी ऋषियों महाऋषियों की रक्षा करुँगी, तब भीमा देवी के नाम से मेरी ख्यति होगी और जब फिर अरुण नमक असुर तीनों लोकों को पीड़ित करेगा, तब मैं असंख्य भ्रमरों का रूप धारण करके उस महादैत्य का वध करुँगी।

तब स्वर्ग में देवता और मृत्यु लोक में मनुष्य मेरी स्तुति करते हुए मुझे भ्रामरी नाम से पुकारेंगे। इस प्रकार जब-जब पृथ्वी राक्षसों से पीड़ित होगी, तब -तब मैं अवतरित होकर शत्रुओं का नाश करुँगी।

इति दुर्गा सप्तशती Durga Saptashati ग्यारहवां अध्याय॥

Durga-Saptashti-Chapter-11 -  ग्यारहवा अध्याय समाप्तम 

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  1. दुर्गा सप्तशती  पहला अध्याय
  2. दुर्गा सप्तशती दूसरा अध्याय
  3.  दुर्गा सप्तशती तीसरा अध्याय
  4. दुर्गा सप्तशती चौथा अध्याय
  5.  दुर्गा सप्तशती पांचवां अध्याय 
  6. दुर्गा सप्तशती छठा अध्याय  
  7. दुर्गा सप्तशती सातवां अध्याय
  8.  दुर्गा सप्तशती आठवा अध्याय
  9. दुर्गा सप्तशती नवां अध्याय
  10. दुर्गा सप्तशती दसवां अध्याय
  11.   दुर्गा सप्तशती ग्यारहवां अध्याय 
  12. दुर्गा सप्तशती बारहवां अध्याय
  13. दुर्गा सप्तशती तेरहवां अध्याय  

 

 

 

 

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