दुर्गा सप्तशती तेरहवां अध्याय Durga Saptashati Paath Adhyay13 Durga SaptashatiPath #durgasaptashati

 

   

Durga Saptashati Paath Adhyay 13 : दुर्गा सप्तशती तेरहवां अध्याय

Durga Saptashati Paath Adhyay

    13 : दुर्गा सप्तशती तेरहवां अध्याय


माता रानी की कृपा हम सब भक्तों पर बनी रहे, इसी की हम कामना करते है| नवरात्री के नौ दिनों में विधि विधान से माँ दुर्गा की उपासना एवं प्रार्थना की जाती है| माँ  दुर्गा की पूजा उपासना में भक्त दुर्गा सप्तशती का पाठ बहुत श्रद्धा के साथ करते है| दुर्गा सप्तशती के 13  अध्याय है जिन में माँ आंबे जी की महिमा का वर्णन विस्तार से बताया गया है माना जाता है की दुर्गा सप्तशती पाठ से उत्तम फल की प्राप्ति होती है| अगर आप संस्कृत में पाठ नहीं कर सकते तो आप सरल हिंदी में इस पाठ को पढ़ सकते है

दुर्गा सप्तशती का पाठ करने के लिए, सबसे पहले नवार्ण मंत्र, कवच, कीलक और अर्गला स्तोत्र का पाठ करना चाहिएइसके बाद दुर्गा सप्तशती का पाठ शुरू करना चाहिए

दुर्गा सप्तशती का पाठ करने से पहले, श्रीदुर्गा सप्तशती की पुस्तक को साफ़ जगह पर लाल कपड़ा बिछाकर रखना चाहिए. इसके बाद, कुमकुम, चावल, और फूल से पूजा करनी चाहिए. इसके बाद, अपने माथे पर रोली लगाकर पूर्वाभिमुख होकर तत्व शुद्धि के लिए चार बार आचमन करना चाहिए

मान्यता है कि अगर नौ दिनों तक दुर्गा सप्तशती का नियमपूर्वक पाठ किया जाए, तो भगवती अति प्रसन्न होती हैं और भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं.

दुर्गा सप्तशती का पहला अध्याय, माँ आनंदेश्वरी के बारे में हैइसमें बताया गया है कि कैसे एक व्यक्ति अकेला और दुखी होकर जंगल में आता हैवह अपने परिवार के बारे में कुछ नहीं जानता और यह भी नहीं जानता कि उसके बच्चे सदाचारी हैं या दुराचारी

मान्यता है कि दुर्गा सप्तशती का पहला अध्याय पढ़ने से मानसिक और शारीरिक सुख मिलता है. वहीं, दूसरा अध्याय कोर्ट-कचहरी से जुड़े मामलों में विजय दिलाता है. तीसरे अध्याय से शत्रु बाधा दूर होती है. तो आईये श्री दुर्गा सप्तशती पाठ का अध्याय 13 सुनते है,



Durga Saptashati Paath Adhyay

13 : दुर्गा सप्तशती तेरहवां अध्याय

 

Durga Saptashati Paath Adhyay 13 : दुर्गा सप्तशती तेरहवां अध्याय

Durga Saptashati Paath

 

(राजा सुरथ और वैश्य  को देवी का वरदान)

 

Durga Saptashati Paath महर्षि मेधा ने कहा — हे राजन ! इस प्रकार देवी के उत्तम माहात्म्य का वर्णन मैंने तुमको सुनाया। जगत को धारण करने वाली इस देवी का ऐसा ही प्रभाव है, वही देवी ज्ञान के देने वाली हैं और भगवान विष्णु की इस माया के प्रभाव से तुम और यह वैश्य तथा अन्य विवेकीजन मोहित होते हैं और भविष्य में मोहित होंगे।

 

हे राजन ! तुम इसी परमेश्वरी की शरण में जाओ। यही भगवती आराधना करने पर मनुष्य को भोग, स्वर्ग तथा मोक्ष प्रदान करती है। मार्कण्ड जी ने कहा महर्षि मेधा की यह बात सुनकर राजा सुरथ ने उन उग्र व्रत वाले ऋषि को प्रणाम किया और राज्य के छिन जाने के कारण उसके मन में अत्यंत ग्लानि हुई, और वह राजा तथा वैश्य तपस्या के लिए वन को चले गए और नदी के तट पर आसन लगाकर भगवती के दर्शन के लिए तपस्या करने लगे।

 Durga Saptashati Paath

दोनों ने नदी के तट पर देवी की मूर्ति बनाई और पुष्प, धूप, गन्ध, दीप तथा हवन द्वारा उसका पूजन करने लगे। पहले उन्होंने आहार को कम कर दिया। फिर बिलकुल निराहार रहकर भगवती में मन लगाकर एकाग्रता पूर्वक उसकी आराधना करने लगे।

वह दोनों अपने शरीर के रक्त से देवी को बलि देते हुए तीन वर्ष तक लगातार भगवती की आराधना करते रहे। तीन वर्ष के पश्चात जगत का पालन करने वाली चंडिका ने उनको प्रत्यक्ष दर्शन देकर कहा।

 

Durga Saptashati Path देवी बोलीं— हे राजन ! तथा अपने कुल को प्रसन्न करने वाले वैश्य ! तुम जिस वर की इच्छा रखते हो वह मुझसे माँगो, वह वर में तुमको दूँगी, क्योंकि मैं तुम पर अत्यंत प्रसन्न हूँ। मार्कण्ड जी कहते हैं यह सुन राजा ने अगले जन्म में नष्ट होने वाला अखण्ड राज्य और इस जन्म में बल पूर्वक अपने शत्रुओं को नष्ट करने के पश्चात पुनः अपना राज्य प्राप्त करने के लिए भगवती से वरदान माँगा और वैश्य ने भी जिसका चित्त संसार की ओर से विरक्त हो चुका था, अतः भगवती से अपनी  तथा अहंकार रूप आसक्ति को नष्ट कर देने वाले ज्ञान को देने के लिए कहा।

 

Durga Saptashati Paath Adhyay      13 : दुर्गा सप्तशती तेरहवां अध्याय

Durga Saptashati देवी ने कहा — हे राजन ! तुम शीघ्र ही अपने शत्रुओं को मारकर पुनः अपना राज्य प्राप्त कर लोगे, तुम्हारा राज्य स्थिर रहने वाला होगा, फिर मृत्यु के पश्चात आप सूर्यदेव के अंश से जन्म लेकर सावर्णिक मनु के नाम से इस पृथ्वी पर ख्याति को प्राप्त होंगे।

 

हे वैश्य ! कुल में श्रेष्ठ आपने जो मुझसे माँगा है, वह वर मैंआपको देती हूँ, आपको मोक्ष के देने वाले ज्ञान की प्राप्ति होगी। मार्कण्ड जी कहते हैं इस प्रकार उन दोनों को मनवांछित वर प्रदान कर तथा उनसे अपनी स्तुति सुनकर भगवती अतंर्धान हो गईं और इस प्रकार क्षत्रियों में श्रेष्ठ वह राजा सुरथ भगवान सूर्यदेव से जन्म लेकर इस पृथ्वी पर सावर्णिक मनु के नाम से विख्यात होंगे।

इति दुर्गा सप्तशती Durga Saptashati तेरहवां अध्याय॥

तेरहवाँ अध्याय समाप्तम 



दोस्तोंअगर आपको यह स्टोरी अच्छी लगी हो तो इसे लाइक जरूर करेंफेसबुक पर शेयर जरूर करें।इसी तरह के और भी आर्टिकल पढ़ने के लिए जुड़े रहें हमसे अपने विचार हमें आर्टिकल के ऊपर कमेंट बॉक्स में जरूर भेजें।

 

 

  दोस्तोंहम आशा करते हैं कि हमारे द्वारा दी गई  जानकारी आपके लिए बहुत उपयोगी होगी और आप इससे बहुत लाभ उठाएंगे। हम आपके बेहतर भविष्य की कामना करते हैं और आपका हर सपना सच हो।

धन्यवाद   

 

डिसक्लेमर:

'इस लेख में दी गई जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। सूचना के विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/धार्मिक मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संकलित करके यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना हैपाठक या उपयोगकर्ता इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह से उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता या पाठक की ही होगी।'

 यहां दी गई जानकारी ज्योतिष पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है।हम इसकी पुष्टि नहीं करते है। किसी भी उपाय को करने से पहले संबंधित विषय के एक्सपर्ट से सलाह अवश्य लें।

  1. दुर्गा सप्तशती  पहला अध्याय
  2. दुर्गा सप्तशती दूसरा अध्याय
  3.  दुर्गा सप्तशती तीसरा अध्याय
  4. दुर्गा सप्तशती चौथा अध्याय
  5.  दुर्गा सप्तशती पांचवां अध्याय 
  6. दुर्गा सप्तशती छठा अध्याय  
  7. दुर्गा सप्तशती सातवां अध्याय
  8.  दुर्गा सप्तशती आठवा अध्याय
  9. दुर्गा सप्तशती नवां अध्याय
  10. दुर्गा सप्तशती दसवां अध्याय
  11.   दुर्गा सप्तशती ग्यारहवां अध्याय 
  12. दुर्गा सप्तशती बारहवां अध्याय
  13. दुर्गा सप्तशती तेरहवां अध्याय  

कोई टिप्पणी नहीं

Blogger द्वारा संचालित.