Durga Saptashati Paath Adhyay 3| दुर्गा सप्तशती पाठ अध्याय 3|Durga Saptashati Path Adhyay 3दुर्गा सप्तशती अध्याय 3#durgasaptashati

 

Durga Saptashati Paath Adhyay 3 : श्री दुर्गा सप्तशती तीसरा अध्याय

Durga Saptashati Paath Adhyay 3 :
श्री दुर्गा सप्तशती तीसरा अध्याय



माता रानी की कृपा हम सब भक्तों पर बनी रहे, इसी की हम कामना करते है| नवरात्री के नौ दिनों में विधि विधान से माँ दुर्गा की उपासना एवं प्रार्थना की जाती है| माँ  दुर्गा की पूजा उपासना में भक्त दुर्गा सप्तशती का पाठ बहुत श्रद्धा के साथ करते है| दुर्गा सप्तशती के 13  अध्याय है जिन में माँ आंबे जी की महिमा का वर्णन विस्तार से बताया गया है माना जाता है की दुर्गा सप्तशती पाठ से उत्तम फल की प्राप्ति होती है| अगर आप संस्कृत में पाठ नहीं कर सकते तो आप सरल हिंदी में इस पाठ को पढ़ सकते है

दुर्गा सप्तशती का पाठ करने के लिए, सबसे पहले नवार्ण मंत्र, कवच, कीलक और अर्गला स्तोत्र का पाठ करना चाहिएइसके बाद दुर्गा सप्तशती का पाठ शुरू करना चाहिए

दुर्गा सप्तशती का पाठ करने से पहले, श्रीदुर्गा सप्तशती की पुस्तक को साफ़ जगह पर लाल कपड़ा बिछाकर रखना चाहिए. इसके बाद, कुमकुम, चावल, और फूल से पूजा करनी चाहिए. इसके बाद, अपने माथे पर रोली लगाकर पूर्वाभिमुख होकर तत्व शुद्धि के लिए चार बार आचमन करना चाहिए

मान्यता है कि अगर नौ दिनों तक दुर्गा सप्तशती का नियमपूर्वक पाठ किया जाए, तो भगवती अति प्रसन्न होती हैं और भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं.

दुर्गा सप्तशती का पहला अध्याय, माँ आनंदेश्वरी के बारे में हैइसमें बताया गया है कि कैसे एक व्यक्ति अकेला और दुखी होकर जंगल में आता हैवह अपने परिवार के बारे में कुछ नहीं जानता और यह भी नहीं जानता कि उसके बच्चे सदाचारी हैं या दुराचारी

मान्यता है कि दुर्गा सप्तशती का पहला अध्याय पढ़ने से मानसिक और शारीरिक सुख मिलता है. वहीं, दूसरा अध्याय कोर्ट-कचहरी से जुड़े मामलों में विजय दिलाता है. तीसरे अध्याय से शत्रु बाधा दूर होती है. तो आईये श्री दुर्गा सप्तशती पाठ का अध्याय सुनते है

Durga Saptashati Paath Adhyay 3 : श्री दुर्गा सप्तशती तीसरा अध्याय

Durga Saptashati Paath Adhyay 3 :
श्री दुर्गा सप्तशती तीसरा अध्याय

 

Durga Saptashati Paath

 

सेनापतियों सहित महिषासुर का वध

 

Durga Saptashati Paath महर्षि मेधा ने कहा — महिषासुर की सेना नष्ट होती देखकर, उस सेना का सेनापति चिक्षुर क्रोध में भरकर देवी के साथ युद्ध करने के लिए आगे बढ़ा। वह देवी  पर इस प्रकार बाणों की वर्षा करने लगी, मानो सुमेरु पर्वत पानी की धार बरसा रहा हो

इस प्रकार देवी ने अपने बाणों से उसके बाणों को काट डाला तथा उसके घोड़ों और सारथी को मार दिया, साथ ही उसके धनुष और उसकी अत्यंत ऊँची ध्वजा को भी काटकर नीचे गिरा दिया उसका धनुष कट जाने के पश्चात उसके शरीर के अंगो को भी अपने बाणों से बींध दिया, धनुष घोड़ों और सारथी के नष्ट हो जाने पर वह असुर ढाल और तलवार लेकर देवी की तरफ आया,

उसने अपने तीक्ष्ण धार वाली तलवार से देवी वाहन सिंह के मस्तक पर प्रहार किया और बड़े वेग से देवी की बायीं भुजा पर वार किया, किन्तु देवी की बायीं भुजा को छूते ही उस दैत्य की तलवार टूटकर दो टुकड़े हो गई। इससे दैत्य ने क्रोध में भरकर शूल हाथ में लिया और उसे भद्रकाली देवी की ओर फेंका।

Durga Saptashati Path Adhyay 3| दुर्गा सप्तशती पाठ अध्याय 3| 


Durga Saptashati Paath Adhyay 3 : श्री दुर्गा सप्तशती तीसरा अध्याय

Durga Saptashati Paath

 

देवी की ओर आता हुआ वह शूल आकाश से गिरते हुए सूर्य के सामान प्रज्वलित हो उठा। उस शूल को अपनी ओर आते हुए देखकर देवी ने भी शूल छोड़ा और महा असुर के शूल के सौ टुकड़े कर दिए और साथ ही महा असुर के प्राण भी हर लियेचिक्षुर के मरने पर देवताओं को दुःख देने वाला चामर नामक दैत्य हाथी पर सवार हो कर देवी से लड़ने के लिए आया और उसने आने के साथ ही शक्ति से प्रहार किया, किन्तु देवी ने अपनी हुंकार से ही उसे तोड़कर पृथ्वी पर डाल दिया

शक्ति को टूटा हुआ देखकर दैत्य ने क्रोध से लाल होकर शूल को चलाया, किन्तु देवी ने उसको भी काट दिया। इतने में देवी का सिंह उछल कर हाथी के मस्तक पर सवार हो गया और दैत्य के साथ बहुत ही तीव्र युद्ध करने लगा, फिर वह दोनों लड़ते हुए हाथी पर से पृथ्वी पर गिरे और दोनों बड़े क्रोध से लड़ने लगे।

फिर सिंह बड़े जोर से आकाश की और उछला और जब पृथ्वी की ओर आया तो अपने पंजे से चामर के सिर को धड़ से अलग कर दिया, क्रोध में भरी हुई देवी ने शिला और वृक्ष आदि की चोटों से उदग्र को भी मार दिया। कराल को दांतो, मुक्कों और थप्पड़ों से चूर्ण कर डाला।

Durga Saptashati Path

क्रोध हुए देवी ने गदा के प्रहार से उद्धत दैत्य को मार गिराया, भिन्द्रीपाल से वाष्पकल को, बाणों से ताम्र अंधक को मौत के घाट उतार दिया, तीनों नेत्रों वाली परमेश्वरी ने त्रिशूल से उग्रास्य, उग्रवीर्य और महाहनु नामक राक्षसों को मार गिराया

 

उसने अपनी तलवार से विडाल नामक दैत्य का सिर काट डाला तथा अपने बाणों से दुधर्र और दुमुख राक्षसों को यमलोक को पहुँचा दिया इस प्रकार जब महिषासुर ने देखा की देवी ने मेरी सेना को नष्ट कर दिया है तो वह भैसें का रूप धारण कर देवी के गणों को दुःख देने लगा

उन गणों में कितनों को उसने मुख के प्रहार से, कितनों को खुरों से, कितनों को पूंछ से, कितनों को सींगो से, बहुतों को दौड़ने के वेग से, अनेकों को सिंहनाद से, कितनों को चक्कर देकर और कितनों को श्वास वायु के झोंको से पृथ्वी पर गिरा दिया।

वह दैत्य इस प्रकार गणों की सेना को गिराकर देवी के सिंह को मारने के लिए दौड़ाइस पर देवी को बड़ा गुस्सा आया उधर दैत्य भी क्रोध में भरकर धरती को खुरों से खोदने लगा तथा सींगों से पर्वतों को उखाड़उखाड़ कर धरती पर फेंकने लगा और मुख से शब्द करने लगा।

Durga Saptashati

 

महिषासुर के वेग से चक्कर देने के कारण पृथ्वी क्षुब्ध होकर फटने लगी, उसकी पूंछ से टकराकर समुद्र चारों ओर फैलने लगा, हिलते हुए सींगो के आघात से मेघ खण्डखण्ड हो गए और श्वास से आकाश में उड़ते हुए पर्वत फटने लगे

इस तरह क्रोध में भरे राक्षस को देख चण्डिका को भी क्रोध गया और वह उसके मारने के लिये क्रोध में भर गई। देवी ने पाश फेंककर दैत्य को बाँध लिया और उसने बंध जाने पर दैत्य का रूप त्याग दिया और सिंह का रूप बना लिया और ज्यों ही देवी उसका सिर काटने के लिए तैयार हुई कि उसने पुरुष का रूप बना लिया, जोकि हाथ में तलवार लिए हुए था देवी ने तुरन्त ही अपने बाणों के साथ उस पुरुष को उसकी तलवार ढाल सहित बींध डाला।

 Durga Saptashati

इसके पश्चात वह हाथी के रूप में दिखाई देने लगा और अपने लम्बी सूंड़ से देवी के वाहन सिंह को खींचने लगा और गर्जने लगा। देवी ने अपनी तलवार से उसकी सूंड़ काट डाली, तब राक्षस ने एक बार फिर भेंसे का रूप धारण कर लिया और पहले की तरह चर-अचर जीवों सहित समस्त त्रिलोकी को व्याकुल करने लगा।

 

इसके पश्चात क्रोध में भरी हुई देवी बारम्बार उत्तम मधु का पान करने लगी और लाल लाल नेत्र करके हंसने लगी। उधर बलवीर्य तथा मद से क्रोध हुआ दैत्य भी गरजने लगा, अपने सींगो से देवी पर पर्वतों को फेंकने लगा। देवी अपने बाणों से उसके फेंके हुए पर्वतों को चूर्ण करती हुई बोली- मूढ़ ! जब तक मैं मधुपान कर रही हूँ, तब तक तू गर्ज ले और इसके पश्चात मेरे हाथों तेरी मृत्यु हो जाने पर देवता गरजेंगे।

Durga Saptashati Paath Adhyay 3 : श्री दुर्गा सप्तशती तीसरा अध्याय

Durga Saptashati Paath
महर्षि मेघा ने कहा – यों कहकर देवी उछल कर उस दैत्य पर जा चढ़ी और उसको अपने पैर से दबाकर शूल से उसके गले पर आघात किया, देवी के पैर से दबने पर भी दैत्य अपने दूसरे रूप से अपने मुख से बाहर होने लगा अभी वह आधा ही बाहर निकला था कि  देवी ने तलवार से उसका सिर काट डाला

इसके पश्चात सारी राक्षस सेना हाहाकार करती हुए वहाँ से भाग खड़ी हुई और सब देवता अत्यंत प्रसन्न हुए तथा ऋषियों महाऋषियो सहित देवी की स्तुति करने लगे, गन्धर्वराज गान करने तथा अप्सराएं नृत्य करने लगीं।

॥इति श्री दुर्गा सप्तशती Durga Saptashati Paath तीसरा अध्याय॥

Durga Saptashti -Chapter 3- तीसरा अध्याय समाप्त 


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 Durga Saptashati Path Adhyay 3| दुर्गा सप्तशती पाठ अध्याय 3|


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  1. दुर्गा सप्तशती  पहला अध्याय
  2. दुर्गा सप्तशती दूसरा अध्याय
  3.  दुर्गा सप्तशती तीसरा अध्याय
  4. दुर्गा सप्तशती चौथा अध्याय
  5.  दुर्गा सप्तशती पांचवां अध्याय 
  6. दुर्गा सप्तशती छठा अध्याय  
  7. दुर्गा सप्तशती सातवां अध्याय
  8.  दुर्गा सप्तशती आठवा अध्याय
  9. दुर्गा सप्तशती नवां अध्याय
  10. दुर्गा सप्तशती दसवां अध्याय
  11.   दुर्गा सप्तशती ग्यारहवां अध्याय 
  12. दुर्गा सप्तशती बारहवां अध्याय
  13. दुर्गा सप्तशती तेरहवां अध्याय  

 

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