Durga Saptashati Paath Adhyay 5 दुर्गा सप्तशती पांचवां अध्याय Durga Saptashati Path Adhyay 5 दुर्गा सप्तशती अध्याय 5
Durga Saptashati Paath Adhyay 5 :
दुर्गा सप्तशती पांचवां अध्याय
माता रानी की कृपा हम सब भक्तों पर बनी रहे, इसी की हम कामना करते है| नवरात्री
के नौ दिनों में विधि विधान से माँ दुर्गा की उपासना एवं प्रार्थना
की जाती है| माँ
दुर्गा की पूजा उपासना में
भक्त दुर्गा सप्तशती
का पाठ बहुत श्रद्धा
के साथ करते है| दुर्गा सप्तशती
के
13 अध्याय है जिन में माँ आंबे जी की महिमा का वर्णन विस्तार से बताया गया है माना जाता है की दुर्गा सप्तशती पाठ से उत्तम फल की प्राप्ति होती है| अगर आप संस्कृत में पाठ नहीं कर सकते तो आप सरल हिंदी में इस पाठ को पढ़ सकते है|
दुर्गा सप्तशती का पाठ करने के लिए, सबसे पहले नवार्ण मंत्र, कवच, कीलक और अर्गला स्तोत्र का पाठ करना चाहिए. इसके बाद दुर्गा सप्तशती का पाठ शुरू करना चाहिए.
दुर्गा सप्तशती का पाठ करने से पहले, श्रीदुर्गा सप्तशती की पुस्तक को साफ़ जगह पर लाल कपड़ा बिछाकर रखना चाहिए. इसके बाद, कुमकुम, चावल, और फूल से पूजा करनी चाहिए. इसके बाद, अपने माथे पर रोली लगाकर पूर्वाभिमुख होकर तत्व शुद्धि के लिए चार बार आचमन करना चाहिए.
मान्यता है कि अगर नौ दिनों तक दुर्गा सप्तशती का नियमपूर्वक पाठ किया जाए, तो भगवती अति प्रसन्न होती हैं और भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं.
दुर्गा सप्तशती का पहला अध्याय, माँ आनंदेश्वरी के बारे में है. इसमें बताया गया है कि कैसे एक व्यक्ति अकेला और दुखी होकर जंगल में आता है. वह अपने परिवार के बारे में कुछ नहीं जानता और यह भी नहीं जानता कि उसके बच्चे सदाचारी हैं या दुराचारी.
मान्यता है कि दुर्गा सप्तशती का पहला अध्याय पढ़ने से मानसिक और शारीरिक सुख मिलता है. वहीं, दूसरा अध्याय कोर्ट-कचहरी से जुड़े मामलों में विजय दिलाता है. तीसरे अध्याय से शत्रु बाधा दूर होती है. तो आईये श्री दुर्गा सप्तशती पाठ का अध्याय 5 सुनते है
तो आईये श्री दुर्गा सप्तशती पाठ का अध्याय 5 सुनते है
Durga Saptashati Paath Adhyay 5 :
दुर्गा सप्तशती पांचवां अध्याय
Durga Saptashati Paath
देवताओं द्वारा देवी की स्तुति एवं शुंभ के दूत का देवी
को समझाना ।
Durga Saptashati Paath
महर्षि मेघा बोले- पूर्वकाल में शुम्भ–निशुंभ नामक असुरों ने अपने बल के मद से इंद्र का त्रिलोकी का राज्य और यज्ञों के भाग छीन लिए और वह दोनों इसी प्रकार सूर्य, चंद्रमा, धर्मराज और वरुण के अधिकार भी छीन कर स्वयं ही उनका उपयोग करने लगे।
वायु और अग्नि का कार्य भी वही करने लगे और इसके पश्चात उन्होंने जिन देवताओं का राज्य छीना था, उनको अपने-अपने स्थान से निकल दिया। इस तरह से अधिकार छिने हुए तथा दैत्यों द्वारा निकाले हुए देवता अपराजिता देवी का स्मरण करने लगे कि देवी ने हमको वर दिया था कि मैं तुम्हारी सम्पूर्ण विपत्तियों को नष्ट करके रक्षा करूगीं।
ऐसा विचार कर सब देवता हिमाचल पर गए और भगवती महामाया की स्तुति करने लगे। देवताओं ने कहा— देवी को नमस्कार है, शिवा को नमस्कार है, प्रकृति और भद्रा को नमस्कार है। हम लोग रौद्र, नित्य और गौरी को नमस्कार करते हैं ।
ज्योत्स्नामयी, चन्द्ररुपिणी व सुख रूप देवी को निरंतर नमस्कार है, शरणागतों का कल्याण करने वाली, वृद्धि और सिद्धिरूपा देवी को हम बार-२ नमस्कार करते है और नैर्र्ति, राजाओं की लक्ष्मी तथा सावर्णि को नमस्कार है, दुर्गा को, दुर्ग स्थलों को पार करने वाली दुर्गापारा को, सारा सर्कारिणी, ख्यति कृष्ण और ध्रुमदेवी को सदैव नमस्कार है।
Durga Saptashati Path
अत्यंत सौम्य तथा अत्यंत रौद्ररूपा को हम नमस्कार करते हैं उन्हें हमारा बारम्बार प्रणाम है। जगत की आधारभूता कृति देवी को बार-बार नमस्कार करते हैं। जिस देवी को प्राणिमात्र विष्णुमाया कहते हैं उसको नमस्कार है, उसको नमस्कार है, उसको नमस्कार है , जो देवी सम्पूर्ण प्राणियों में चेतना कहलाती है उसको नमस्कार है, उसको नमस्कार है, उसको नमस्कार है,
जो देवी सम्पूर्ण प्राणियों में बुद्धिरूप से स्थित है उसको नमस्कार है, उसको नमस्कार है, उसको नमस्कार है, जो देवी सम्पूर्ण प्राणियों में निद्रा रूप से विराजमान है उसको नमस्कार है, उसको नमस्कार है, उसको नमस्कार है, जो देवी सम्पूर्ण प्राणियों में क्षुधा रूप से विराजमान है उसको नमस्कार है, उसको नमस्कार है, उसको नमस्कार है,
जो देवी सम्पूर्ण प्राणियों में छाया रूप से स्थित उसको नमस्कार है, उसको नमस्कार है, उसको नमस्कार है, जो देवी सब प्राणियों में शक्ति रूप से स्थित है, उसको नमस्कार है, उसको नमस्कार है, उसको नमस्कार है, जो देवी सब प्राणियों में तृष्णा रूप से स्थित है, उसको नमस्कार है, उसको नमस्कार है, उसको नमस्कार है,
जो देवी सब प्राणियों में शान्ति रूप से स्थित है, उसको नमस्कार है, उसको नमस्कार है, उसको नमस्कार है, जो देवी सब प्राणियों में जाति रूप से स्थित है, उसको नमस्कार है, उसको नमस्कार है, उसको नमस्कार है, जो देवी सब प्राणियों में लज्जारूप से स्थित है, उसको नमस्कार है, उसको नमस्कार है, उसको नमस्कार है,
जो देवी सब प्राणियों में शान्ति रूप से स्थित है, उसको नमस्कार है, उसको नमस्कार है, उसको नमस्कार है, जो देवी सब प्राणियों में श्रध्दा रूप से स्थित है, उसको नमस्कार है, उसको नमस्कार है, उसको नमस्कार है, जो देवी सब प्राणियों में कान्ति रूप से स्थित है, उसको नमस्कार है, उसको नमस्कार है, उसको नमस्कार है,
जो देवी सब प्राणियों में लक्ष्मी रूप से स्थित है, उसको नमस्कार है, उसको नमस्कार है, उसको नमस्कार है, जो देवी सब प्राणियों में वृति रूप से स्थित है, उसको नमस्कार है, उसको नमस्कार है, उसको नमस्कार है, जो देवी सब प्राणियों में स्मृति रूप से स्थित है, उसको नमस्कार है, उसको नमस्कार है, उसको नमस्कार है,
जो देवी सब प्राणियों में दयारूप से स्थित है, उसको नमस्कार है, उसको नमस्कार है, उसको नमस्कार है, जो देवी सब प्राणियों में तुष्टि रूप से स्थित है, उसको नमस्कार है, उसको नमस्कार है, उसको नमस्कार है, जो देवी सब प्राणियों में मातृरूप से स्थित है, उसको नमस्कार है, उसको नमस्कार है, उसको नमस्कार है,
जो देवी सब प्राणियों में भ्रांति रूप से स्थित है, उसको नमस्कार है, उसको नमस्कार है, उसको नमस्कार है, जो देवी सब प्राणियों में नित्य व्याप्त रहती है, उसको नमस्कार है, उसको नमस्कार है, उसको नमस्कार है ।
Durga Saptashati Paath
पूर्वकाल में देवताओं ने अपने अभीष्ट फल पाने के लिए जिसकी स्तुति की है और देवराज इंद्र ने बहुत दिनों तक जिसका सेवन किया है वह कल्याण की साधनभूता ईश्वरी हमारा कल्याण और मंगल करे तथा सारी विपतियों को नष्ट कर डाले, असुरों के सताये हुए सम्पूर्ण देवता उस परमेश्वरी को इस समय नमस्कार करते हैं तथा जो भक्ति पूर्वक स्मरण की जाने पर तुरन्त ही सब विपतियों को नष्ट कर देती हैं वह जगदम्बा इस समय भी हमारा मंगल करके हमारी समस्त विपतियों को दूर करें।
Durga Saptashati महर्षि मेघा ने कहा — हे राजन ! इस प्रकार जब देवता स्तुति कर रहे थे तो उसी समय पार्वती देवी गंगा में स्नान करने के लिए आईं, तब उनके शरीर से प्रकट होकर शिवादेवी बोलीं— शुम्भ दैत्य के द्वारा स्वर्ग से निकाले हुए और निशुम्भ से हारे हुए यह देवता मेरी ही स्तुति कर रहे हैं ।
पार्वती के शरीर से अम्बिका निकली थी, इसलिए उसको सम्पूर्ण लोक में ( कौशिकी) कहते हैं । कौशिकी के प्रकट होने के पश्चात पार्वती देवी के शरीर का रंग काला हो गया और वह हिमालय पर रहने वाली कालिका देवी के नाम से प्रसद्धि हुईं, फिर शुम्भ और निशुम्भ के दूत चण्डमुण्ड वहाँ आये और उन्होंने परम मनोहर रूप वाली अम्बिका देवी को देखा।
फिर वह शुम्भ के पास जाकर बोले — “महाराज ! एक अत्यंत सुंदर स्त्री हिमालय को प्रकाशित कर रही है, वैसा रंग रूप आज तक हमने किसी स्त्री में नहीं देखा, हे असुररेश्वर ! आप यह पता लगाएं कि वह कौन है और उसका ग्रहण कर लें ।
वह स्त्री स्त्रियों में रत्न है, वह अपनी कान्ति से दसों दिशाओं को प्रकाशित करती हुई वहां स्थित है, इसलिए आपको उसका देखना उचित है । हे प्रभो ! तीनों लोकों के हाथी घोड़े और मणि इत्यादि जितने रत्न हैं वह सब इस समय आपके घर में शोभायमान हैं ।
Durga Saptashati in hindi
हाथियों में रत्न रूप ऐरावत हाथी और उच्चैश्रवा नामक घोडा तो आप इंद्र से ले आये हैं, हंसों द्वारा जुता हुआ विमान जो कि ब्रह्मा जी के पास था, अब भी आपके पास है और यह महापद्म नामक खजाना आपने कुबेर से छीना है, सुमद्र ने आपके सदा खिले हुए फूलों की किन्जलिकनी नामक माला दी है,
वरुण का कंचन की वर्षा करने वाला छत्र आपके पास है, रथों में श्रेष्ट प्रजापतिक रथ भी आपके पास ही है, हे दैत्येन्द्र ! मृत्यु से उत्क्रान्तिदा नामक शक्ति भी आपने छीन लिए है और वरुण का पाश भी आपके भ्राता निशुम्भ के पास ही है और समुद्र में पैदा होने वाले सब प्रकार के रत्न भी आपके भ्राता निशुम्भ के अधिकार में हैं, और जो अग्नि में न जल सकें, ऐसे दो वस्त्र भी अग्निदेव ने आपको दिये हैं ।
हे दैत्यराज ! इस प्रकार सारी रत्नरूपी वस्तुएं आप संग्रह कर चुके हैं तो फिर कल्याणमयी स्त्रियों में रतन रूप अनुपम स्त्री को आप क्यों नहीं ग्रहण करते ?
Durga Saptashati Paath महर्षि मेघा बोले — चण्ड – मुण्ड का यह वचन सुनकर शुम्भ ने विचारा कि सुग्रीव को अपना दूत बना कर देवी के पास भेजा जाय। प्रथम उसको सब कुछ समझा दिया और कहा कि वहाँ जाकर तुम उसको अच्छी तरह से समझाना और ऐसा उपाय करना जिससे वह प्रसन्न होकर तुरतं मेरे पास चली आये, भली प्रकार से समझाकर कहना।
दूत सुग्रीव पर्वत के उस रमणीय भाग में पहुंचा जहाँ देवी विराजमान थीं। दूत ने देवी को प्र्णाम कर कहा — देवी ! दैत्यराज शुम्भ जो इस समय तीनों लोकों के स्वामी हैं, उनका मैं दूत हूँ । सम्पूर्ण देवता उसकी आज्ञा एक स्वर से मानते हैं । अब जो कुछ उसने कहला भेजा है, वह सुनो।
उसने कहा है, इस समय सम्पूर्ण त्रिलोकी मेरे वश में है और सम्पूर्ण यज्ञों के भाग को पृथक–पृथक मैं लेता हूँ तीनों लोकों में जितने श्रेष्ठ रत्न हैं वह सब मेरे पास हैं, देवराज इंद्र का वाहन ऐरावत मेरे पास है जो मैंने उससे छीन लिया है, उच्चै: श्रवा नामक घोडा जो क्षरीसागर मंथन करने से प्रकट हुआ था उसे देवताओं ने मुझे समर्पित किया है।
हे सुंदरी ! इनके अतिरिक्त और भी जो रत्न भूषण पदार्थ देवताओं के पास थे वह सब मेरे पास हैं। हे देवी ! मैं तुम्हें संसार की स्त्रियों में रत्न मानता हूँ, क्योकि रत्नों का उपभोग करने वाला मैं ही हूँ । हे चञ्चल कटाक्षों वाली सुंदरी ! अब यह मैं तुझ पर छोड़ता हूँ कि तू मेरे भाई महापराक्रमी निशुम्भ की सेवा में आ जाये।
Durga Saptashati
यदि तू मुझे वरेगी तो तुझे अतुल महान एश्वर्य की प्राप्ति होगी, अत: तुम अपनी बुद्धि से यह विचार कर मेरे पास चली आओ ।
महर्षि मेघा बोले दूत के ऐसा कहने पर सम्पूर्ण जगत का कल्याण करने वाली भगवती दुर्गा मन –ही–मुस्कुराई और इस प्रकार कहने लगी। हे दूत ! तू जो कुछ कह रहा है वह सत्य है और इसमें किंचितमात्र भी झूठ नहीं है। शुम्भ इस समय तीनों लोकों का स्वामी है और निशुम्भ भी उसी की तरह पराक्रमी है, किन्तु इसके सम्बन्ध में मैं जो प्रतिज्ञा कर चुकी हूँ उसे कैसे झुठला सकती हूँ ? अतः तू, मैंने जो प्रतिज्ञा की है उसे सुनो।
जो मुझे युद्ध में जीत लेगा और मेरे अभिमान को खण्डित करेगा तथा बल में मेरे समान होगा, वही मेरा स्वामी होगा। इसलिए शुम्भ अथवा महापराक्रमी निशुम्भ यहाँ आवे और युद्ध में जीत कर मुझे से विवाह करले, इसमें भला देर की क्या आवश्यकता है ?
दूत ने कहा हे देवी ! तुम अभिमान में भरी हुई हो, मेरे सामने तुम ऐसी बात न करो। त्रिलोकी में मुझे तो ऐसा कोई दिखाई नहीं देता जो की शुम्भ और निशुम्भ के सामने ठहर सके। हे देवी ! जब अन्य देवताओं में से कोई शुम्भ व निशुम्भ के सामने युद्ध में ठहर नहीं सकता तो फिर तुम जैसी स्त्री उनके सामने रणभूमि में ठहर सकेगी ?
Durga Saptashati Path
जिन शुम्भ आदि असुरों के सामने इंद्र आदि देवता नहीं ठहर सके तो फिर तुम अकेली स्त्री उनके सामने कैसे ठहर सकोगी ? अतः तुम मेरा कहना मानकर उनके पास चली जाओ नहीं तो जब वह तुम्हें केश पकड़ कर घसीटते हुए ले जावेंगे तो तुम्हारा गौरव नष्ट हो जायेगा, इसलिए मेरी बात मान लो।
देवी कहा- जो कुछ तुमने कहा ठीक है। शुम्भ और निशुम्भ बड़े बलवान हैं, लेकिन मैं क्या कर सकती हूँ क्योंकि मैं बिना विचारे प्रतिज्ञा कर चुकी हूँ, इसलिए तुम जाओ और मैंने जो कुछ कहा है, वह सब आदर पूर्वक असुरेन्द्र से कह दो, इसके पश्चात जो वह उचित समझें करें।
॥ इति दुर्गा सप्तशती Durga
Saptashati पांचवां अध्याय॥
Durga-Saptashti-Chapter-5 पांचवा अध्याय समाप्तम
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